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________________ २६ जैन आगम वाद्य कोश में भी इसे मुंह से बजाया जाने वाला वाद्य कहा वाद्य, इंडियन म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट्स) (विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-इंडियन फोक पिरिपिरिया (पिरिपिरिया) राज. ७१, भग. ५/ म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट्स) ६४, आ. चू. ११/४ मुरली, मारगी मुरली, पिरिपिरि पव्वीसग (पव्वीसग) प्रश्न. ४/४ आकार-बांसुरी सदृश। प्रविसक, पिनाकी वीणा, पिनाक, सुरवितान, पेना, विवरण-यह वाद्य बांसरी का ही एक भेद है। पेन्ना वीणा इसका बांस दो हाथ से कुछ बड़ा होता है। बजाने आकार-धनुषाकार। के लिए एक मुख-रन्ध्र होता है तथा स्वरोत्पत्ति के विवरण-यह एक अति प्राचीन वाद्य है, जिसका लिए चार छिद्र होते हैं। इसका नाद अत्यन्त उल्लेख प्रायः सभी संगीत ग्रंथों में प्राप्त होता हैं। मनोहारी होता है। कुछ परवर्ती आचार्यों ने इसे इस वाद्य का दंड ४१ अंगुल का होता है। सिरे 'मारगी मुरली' के नाम से भी संबोधित किया है। पर एक अंगुल चौड़ा तथा मध्य में दो अंगुल असम के आदिवासी क्षेत्रों में इसे पिरिपिरि कहते चौड़ा रहता है। इसके दोनों सिरों पर पौने दो हैं। अंगुल छोड़कर एक-एक अंगुल लम्बे तथा पौने दो। (विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-संगीत सार) अंगुल चौड़े मोहरे लगे रहते हैं। इन मोहरों के ऊपर मध्य में एक तांत बंधी रहती है। दंड के निचले भाग में तीन तुम्बे इस प्रकार लगे रहते हैं पिरिली, पिरली (पिरिली, पिरली) जीवा. ३/ कि वादक के बैठने की स्थिति में निचला तुम्बा ५८८, जम्बू. ३/३१, जीवा. २६६, ज.पृ. १०१ दोनों पैरों के बीच में, बीच का तुम्बा बगल में पिरली, पुंगी, जिजीवी, तुम्बी, बीन, नागसर, तथा अन्तिम तुम्बा कंधे पर आ जाता है। इस मडवरि, महुदि, पीपिहरी प्रकार वीणावादक की ऐसी स्थिति बन जाती है आकार-लम्बी नली के मध्य लगी हुई तुम्बी के जैसे कोई धनुर्धारी धनुष लेकर बैठा हो। यह वीणा सदृश। कमान से बजायी जाती है, जिसकी लम्बाई २१ अंगुल होती है। इसमें परदे नहीं होते। तांत तथा कमान में विरोजा लगाया जाता है। विमर्श-संगीत ग्रंथों में 'पव्वीसग' नामक वाद्य का उल्लेख प्राप्त नहीं होता। पव्वीसग देशी भाषा का शब्द है, जिसकी संस्कृत छाया-प्रविसक हो सकती है। प्रविसक पीनाकी वीणा को कहते है इसलिए प्रस्तुत शब्द के अन्तर्गत इसका ग्रहण किया गया है। (विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-भारतीय संगीत Jain Education Interational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.016097
Book TitleJain Agam Vadya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size5 MB
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