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________________ ढंकुण (ढंकुण) निसि. १७/१३९ आ.चू. ११/२ ढंकुण, गोपी यंत्र, गोपी जंत्र आकार-तुनतुना सदृश। जैन आगम वाद्य कोश और स्वर बदलने की क्षमता रखता है। क्योंकि यह तुनतुने की अपेक्षा कहीं अधिक सुरीले और गहरे स्वर निकाल सकता है। इस वाद्य को प्रान्तीय भाषा में ढंकुण, गोपी यंत्र, गोपी जंत्र आदि कहते हैं। णंदिस्सरा (नंदीस्वरा) जीवा. ३/५९८, जम्बू. २/१६ नंदीस्वर (विवरण के लिए द्रष्टव्य-नंदीघोषा) तंती (तन्त्री) दसा. १०/१८,२४, पज्जो. ५४,७५, ठाणं ८/१०, औप. ६८, राज. ७७ जंत्रीवीणा, त्रितंत्रीवीणा, यंत्रवीणा, तंत्रीवीणा, सितार, तम्बूरा। विवरण-मुख्य रूप से बंगाल, बिहार में पाए जाने आकार-सितार के समान जो तुम्बे से बनाई जाती थी। वाले इस वाद्य में स्वर उत्पन्न करने के लिए निम्न भाग को काष्ठ और चमड़े से मढ़ा जाता है। विवरण-इस वीणा में तीन तार लगे होते थे किन्तु खोलनुमा कटोरा नीचे से चौड़ा होता है जो इसमें पांच तारों का प्रयोग होने लगा। जैसा कि क्रमशः ऊपर की ओर संकरा होता चला जाता है। 'आइने अकबरी' में संगीत वाद्यों का वर्णन करते इसमें लगभग तीन फुट लंबे तथा पतले बांस को हुए यंत्र वीणा का उल्लेख प्राप्त होता है। नीचे की ओर से लगभग ढाई फुट तक चीर देते इस वाद्य का दण्ड प्रायः एक गज लम्बा होता है, हैं। ऊपर के लगभग छह इंच के जुड़े भाग को ऊपर और नीचे दो कटे हुए तुम्बे लगाये जाते हैं। छोड़ कर शेष चिरे हुए भाग की खपच्चियों को इस के दण्ड पर सोलह पर्दे लगे रहते हैं। इसमें छील कर इतना पतला कर देते हैं कि वह लगभग पांच तार लगाये जाते हैं। स्वरों को ऊंचा-नींचा नौ इंच तक फैल सके। निचले बांस की इन करने के लिए पर्यों को सरकाया जा सकता है। खपच्चियों के छोरों को ऊपर से खुले हुए एक वास्तव में यह त्रितंत्रीवीणा प्राचीन यंत्र वीणा का छोटे तुम्बे से जोड़ देते हैं। तुम्बे के निचले भाग ही नाम है। में एक छिद्र कर देते हैं जहां से तार लगाते हैं। कल्लिनाथ ने संगीत रत्नाकर की टीका. पृ. २४८ इसमें एक तार होता है जो ऊपर से नीचे तक में “तत्र त्रितन्त्रिकं लोके जन्त्रशब्देनोच्यते” कहकर जाता है। त्रितंत्री को ही यंत्र वीणा कहा है। यह वाद्य समानधर्मी तुनतुने से कहीं अधिक चपल कवि सूरदास ने भी यंत्र बजाने वाले को यन्त्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016097
Book TitleJain Agam Vadya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size5 MB
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