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________________ भूमिका अनादिनिधनं शब्दब्रह्म नित्यमुपास्महे । व्यवहारक्रमः सृष्टेर्यतश्चलति निर्भरम् ॥ १॥ पण्डितप्रकाण्ड श्री अमरसिंह-विरचित अमरकोषको यदि अमरभाषा (संस्कृत) साहित्यका अमरकोष ( अक्षय निधि) कहा जाय तो लेशमात्र भी अत्युक्ति नहीं होगी। जिस अमरकोषके द्वारा उक्त पण्डितप्रवरका नाम चिरकाल के लिये अमर हो गया है, उस अमरकोषका अनुपम आदर केवल भारतवर्ष में ही नहीं, किन्तु भूमण्डलमात्रमें देखा जाता है। विद्याप्रेमी योरप देशवासी विद्वानोंको अपनी अपनी भाषाओं में इसका अनुवादकर इससे लाभ भठाना कोई विशेष आश्चर्यकर नहीं है, जितना कि धर्मान्धताके कारण अन्य सम्प्रदायके ग्रन्थों को अग्नि और जलदेवको शरण देते हुए मुहम्मद जातिवालोंने भी जब इसका अपनी भाषामें अनुवादका' खुले हृदयसे इसकी उपयोगिताको अङ्गीकार किया, यह हम भारतवासियोंके लिये अत्यन्त हो हर्षप्रद विजयाचिए है। सुदूरतम चीनमें भी इसका अनुवाद होना हम भारतियों के लिये विशेषरूपेग गौरव की बात है। कोषकी आवश्यकता सर्वप्रथम वैदिक शब्दकोषका निर्माण जश्व बृहस्पति के समान गुरु भी इन्द्र के समान शिष्यको हजारों वर्षोंतक शब्द पारायण करते हुए शब्दसागरका' अन्त नहीं पा सके, तब किसका 1. इसी कारण 'खालीक बरी, नामक फारसीमाषाके शब्दकोषको पद्यमय उर्दू भाषामें इन लोगोंने रचना की। १. 'छठी शताब्दी में 'गुणराज' नामक विद्वान ने चीनी भाषामें अमरकोषका अनुवाद किया यह मैक्सगलरका कथन है। इस बातका ज्योतिषाचार्य विद्वद्वरेण्य पं० गिरिजाप्रसाद द्विवेदीने 'भट्ट जीरस्वामी' शीर्षक लेख में अन्वेषण किया है। ३. जैसे कहा भी है'इन्द्रादयोऽपि यस्पान्तं न पयुश्माम्बवारिधः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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