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________________ तो इसका कारण क्या है ?-उनमें उपर्युक्त शब्दचयन तथा शब्दगुम्फनकी क्षमता जनसाधारणकी अपेक्षा अधिक थी। कोश तथा व्याकरण-इन दो शास्त्रों के द्वारा उपयुक्त शब्दभाण्डारकी सृष्टि तथा उसके चयन एवं समीचीन प्रयोगकी शक्ति भाती है, अतः भारत में अतिप्राचीन कालसे-निघण्टु तथा निरुक्त समय से ही कोशके अध्ययनको परम्परा चली आ रही है। संस्कृत के प्रत्येक विद्यार्थीको इसो कारण 'अमरकोश' कण्ठस्थ कराया जाता था और अब भी कराया जाता है, यद्यपि धीरे धीरे यह परम्परा कुछ क्षीण होती जा रही है। अब तो जैसे अंग्रेजोके विद्यार्थी पद-पदया 'डिक्शनरी' उलटते हैं, वैसे ही संस्कृत के विद्यार्थियों में भी सस्ते, प्रमादर्ण बाजार में बिकनेवाले कोशीको उलटनेकी प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है । मैं समझना हूँ कि यह प्रवृत्ति घातक है। एक 'अमरकोश' के मुखस्थ कर लेनेसे-या कमसे कम हस्तामलकवत् आवश्यक शब्दपर्यायों को याद रखनेसे-वारविन्यास या अन्धनिर्माण में जो सुविधा होगी, वह कदापि बार-बार आधुनिक उनके कोशोंको एलटने से नहीं हो सकती, उसे तो शब्ददारिद्रयसे ही मुक्ति नहीं मिलेगी, भाषों तथा कल्पनाओंकी ऊँची उड़ान कैसे ले सकेगा? 'अमरकोश' जैसे अत्यन्त महत्वपूर्ण तथा उपयोगी प्रन्यकी ऐसी टीका जो न केवल प्रामाणिक हो, किन्तु साथ-साथ सुगम हो तथा हिन्दी विद्यार्थियों अथवा विद्वानों के निमित्त उपयोगी हो, स्वागतका विषय है। श्रीहरगोविन्द शास्त्रीने अत्यन्त परिश्रमसे तथा वैज्ञानिक पद्धति से यह टीका निर्मित की है। इसमें उन्होंने अनेकानेक ज्ञातव्य सामग्रीका समावेश किया है। परिशिष्ट' तथा 'शब्दानुक्रमणिका' के द्वारा उन्होंने अपनी टीकाके महत्वको अभिवृद्ध किया है। हर्षका विषय है कि इसका नवोन संस्करण प्रकाशित हो रहा है। हमें पूर्ण विश्वास है कि संस्कृत साहित्य तथा वाङ्मयसे प्रेम रखनेवाले सुधी एवं विज्ञासु इसे अपनायेंगे और सद्वारा अपना हितसाधन करेंगे। 1-1-५० } धर्मेन्द्र ब्रह्मचारी शास्त्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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