SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अमरकोषः । [ प्रथमकाण्डे --१ कल्पौ तु ती नृणाम् ।। २१ ।। __२ मन्वन्तरं तु दिव्यानां युगानालेकसप्ततिः । देवताओं के इपी दो हजार युगका 'ब्रह्माको एक दिन-रात' होती है। अर्थात् देवताओंके एक हजार युगका 'ब्रह्माका दिन' और उतने ही ( देवताओं के एक हजार युग) की "ब्रह्माकी रात' होती है')॥ १ वही ब्रह्माकी दिन-रात मनुष्यों का करौ' (ए. व. भी होता है), 'कल्प' अर्थात् स्थिति और प्रलयका काल है । ('उसमें ब्रह्माके दिन में 'मनुष्यों का स्थिति काल और ब्रह्माकी रातमें 'मनुष्यों का प्रलयकाल' है')॥ २ देवताओं के एकहत्तर युगका "मन्वन्तरम्' (न), १ 'मन्वन्तर' अर्थात् 'चौदह मनुओं में से प्रत्येक मनुका स्थितिकाल होता है। (स्वाय. म्भुव । स्वारोचिष २, औत्तमि ३, तामसि ४, रैवन ५, आयुष ६, वैवस्वत ७, सावर्णि ८, दक्षप्तावर्ण ९, ब्रह्मावर्ण १०, धर्मसावर्ण ११, रौद्रमावर्ण १२, रोच्यसावनि १३ और भौत्यसावर्णि १४ थे चौदह मनु हैं। इनमें से प्रत्येक स्थितिकाल को 'मन्वन्तर' कहते हैं। उनमें ६ मनु बीत चुके हैं, सातवाँ 'वैवस्वत' मन्वन्तर बीत रहा है और अन्य सात बाकी हैं। 'पृष्ठ३८ श्लोक ११से यहाँ तक कहे १ 'दैविकानां युगानान्तु सहस्र परिसङ्घयया । ब्राह्ममेकमहरि तावती रात्रिमेव च ॥१॥ इति मनुः ११७२ ।। २ 'यत्ताग्दादशसाहस्रमुदितं देविकं युगम् ।। तदेकसप्ततिगुणं मन्वन्तरमिहोच्यते ॥१॥ इति मनुः ११७९ ॥ ३ 'मनुः स्वायम्भुवो नाम मनुःस्वारोचिषस्तथा । औत्तमिस्तामसिश्चैव रैवतश्वायुषस्तया ॥१॥ एते तु मनवोऽतीताः सप्तमस्तु रवः सुतः ।। वैवस्वतोऽयं यस्यैतत्सप्तमं वर्तते युगम् ॥ २ ॥ सावर्णिदक्षसावर्णो ब्रह्मसावर्ण इत्यपि । धर्मसावर्ण रुद्रस्तु सावर्णो रोच्यमोत्यवद ॥ ३ ॥ इति वि० पु० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy