SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कालवर्गः ४] मणिप्रभाव्याख्यासहितः । १ दैवे युगसहने द्वे ब्राह्मः ~~~ अर्थात् सूर्य की मकरसंक्रान्ति मिथुनसंक्रान्तितक 'देवताओंका दिन' और दक्षिणायन अर्थात् सूर्यकी कर्कलंक्रान्तिले धनुसंक्रान्तितक 'देवताओंकी रात' होती है। यह भी आधीरात दिनारम्भसे गणनानुसार ही है, वस्तुतः तो उत्तरायणके उत्तरार्द्ध अर्थात् सूर्यकी मेषसंक्रान्ति के प्रथम दिनसे दक्षिणायन के पूर्वार्द्ध अर्थात् सूर्य की कन्यासंक्रान्तिके अन्तिम दिनतक 'देवताओंका दिन' और दक्षिणायन के उत्तरार्द्ध अर्थात् सूर्यको तुलासंक्रान्ति के प्रथम दिनसे उत्तरायणके पूर्वार्द्ध अर्थात् मीनसंक्रान्ति के अन्तिम दिन तक 'देवताओंकी रात' होती है। इस प्रकार उत्तरायण के अर्थात सूर्यकी मिथुनसंक्रान्ति के अन्तिम दिनको 'देवता ओका मध्याह्न और दक्षिणायन के अर्थात् सूर्य की धनुसंक्रान्तिके अन्तिम दिनको 'देवताओकी आधीरात' होती है')॥ . देवताओंके दो हजार युगका 'ब्राह्मः अहोरात्रः' (पु) अर्थात् 'ब्रह्माकी दिन-रात' होती है । ('देवताओंके ३६० दिन या मनुष्यों के ३६० वर्षका 'दिव्यवर्षम् (न)अर्थात् 'देवताओंका एक वर्ष होता है । और बाहर हजार दिव्य वर्ष ( देवताओंके वर्ष) का "मनुष्योंका चतुर्युग' ('सत्ययुग, द्वापर, त्रेता और कलियुग' ) होता है, यही "देवताओंका एक युग' है। १. 'देवे रात्र्यहनी वर्ष प्रविमागस्तयोः पुनः। अहस्तत्रोदगयनं रात्रिः स्यादक्षिणायनम् ।। १ ।। इति मनुः १६६७ ।। २. 'कृतं त्रेतो द्वापरश्च कलिश्चेति चतुर्युगम् । प्रोच्यते तत्सहनं तु ब्रह्मणो दिनमुच्यते ॥१॥ इति वि० पु० । कृतं सत्ययुगम्, अन्ये प्रसिद्धाः॥ ३. 'चत्वार्याहुः सहस्राणि वर्षाणान्तु कृतं युगम् । तस्य तावच्छती संख्या सन्ध्यांशश्च तथाविधः ॥ १॥ इतरेषु ससन्ध्येषु ससन्ध्यांशेषु च त्रिषु । एकापायेन वत्तन्ते सहस्राणि शतानि च ॥२॥ यदेतत्परिसख्यातमादावेव चतुर्युगम् । एतदादासाहवं 'देवानां युगमुच्यते ॥ ३ ॥ इति मनुः ११६९-७११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy