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________________ अमरकोषः । -१ सान्द्रस्निग्धस्तु मेदुरः । २ ज्ञाता तु विदुरो विन्दुःविकासी तु विक्रः ॥ ३० ॥ ४ वितृत्व सृिमरः प्रसाठी व विसार्शिक | ३७८ ५ सहिष्णुः सहन क्षमता तितिक्षुः क्षमिता क्षी ॥ ३१ ॥ ६ क्रोधनोऽसर्वणः कोपी ७ चच्स्त्वत्यन्तकोपनः । ८ जागरुको जागरिता ९ धूनिक चलति ॥ २२ ॥ १० स्वप्रक्शालुद्वालु ११वाणी समी। [ तृतीय काण्डे -- १ सान्द्रस्निग्धः ( ० ० ), मेदुः (१), 'घन, गझिन वा चिकने' के २ नाम हैं ॥ २ ज्ञाता (तृ), विदुरः किंदु: ( १ ), 'जाननेवाले' के ३. नाम हैं ॥ • farrel ( = famifaa | + विकाशी = विकाशिन् ), विकस्वरः ( + विकश्वरः । २ त्रि), 'खिलने (फूलने) बाले फूल आदि के २ नाम है | ४ विसृत्वरः, विसृमरा, प्रसारी (= प्रसारित) विसारी ( विसारिन् । ४. त्रि), 'फैलनेवाली लता आदि' के ४ नाम है ॥ • afgɩg:, ags:, grar ( = vra ), falkgi, qfkar (= alka), समी ( = क्षमिन् । ६ त्र ), 'क्षमा करनेवाले' ६ नाम हैं । ६ क्रोधनः ( + कांधी = कोधिन् ), अमर्षणः, कोपी ( + शेषणः, कोपनः । ३ त्रि ) कोध करनेवाले' के ३ नाम हैं ॥ = ७ घण्डः, अत्यन्तकोपनः (२ त्रि), 'बहुत क्रोध करनेवाले' के २ नाम हैं ॥ ८ जागरूकः, जागरिता ( = जागरितृ । २ त्रि), 'जागनेवाले' के २ नाम है ॥ कोपिन् ९ घूर्णितः, प्रचलायितः (२ त्र ), 'घूर्णित' अर्थात् निद्रा या नशा बादिसे व्याकुल होकर झूमने वाले' के २ नाम हैं ॥ Jain Education International १० स्वप्नक् (= स्वप्नज् ), शयालुः (२ त्रि), 'सोनेवाले' के २ नाम हैं । ११ निद्राणः ( + निद्रितः ), शयितः ( + सुप्तः । २ त्रि) 'सोये हुए ' २ नाम हैं ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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