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________________ विशेष्यनिम्नवर्ग:.] मणिप्रभाव्याख्यासहितः। ३७६ १ पराङमुखः पराचीन: २ स्यादवाङप्यधोमुखः ॥ ३३॥ ३ देवानञ्चति देवध्रय ४विश्वध्रथड विश्वगञ्चति । ५ यः सहाश्चति सभ्रयास ६ स तिर्य यस्तिरोऽश्चति ।। ३४।। ७ वदो वदावदो पक्का ८ वागीशो वाकाति समी। ९ चासोयुक्तिपटुग्मिी १० वावदूकोतिकरि ३४ ।। ११ स्थाजपाकरतु वाचालो वाचाटो बहुमहावाक। १२ दुर्मुखे मुखराबद्धमुखौ १ पराङ्मुखः (+ विमुखः ), पराधीनः (१ त्रि), 'विमुख'के २ नाम हैं। २ भाबाङ ( = अवाच ), अधोमुखः ( + अवाचीनः। २ त्रि), 'नीचे मुख करनेवाले' के २ नाम हैं। ____३ देवद्रयङ् ( = देवद्रयच् नि ), 'देवताओं की पूजा करनेवाले का ४ विष्वयक ( = विश्वयच । + विश्वद्रयङ = विश्वद्रयच । त्रि), 'सब तरफ जाने या पूजा करनेवाले का नाम है । ५ सध्रय ( = सध्यच् त्रि), 'साथ २ चलने रहने या पूजा करने. वाले का नाम है। तिछ( = तिर्यच ), ' तिछी (टेदा) चलनेयाले' का नाम है। ७ वदः, वदावदः, वक्ता ( = बक्तृ । ३ नि), 'बहुत बोलनेवाले' के । माम हैं। ८ वागीशा, वाक्पतिः (त्रि), 'मुन्दर बोलनेवाले' के नाम हैं। ९ वाचोयुक्तिपटुः (+वाचोयुक्ति, पटुः), वाग्मी ( = वाग्मिन् । त्रि) 'युक्तियुक्त बोलनेवाले या नैयायिक मादि' के २ नाम हैं। १. वावदूकः, अतिवक्ता ( = अतिवक्त । २ त्रि), 'चतुरतासे अधिक बोलनेवाले' के २ नाम है। (भा. दी. के मत से 'वाचोयुक्तिण्टुः,......) ४ माम एकार्थक हैं। " जरुपाकः, वाचाय:, वाचारः, बहुगवाक् (बहुगर्यवाच । ४ त्रि), 'निष्प्रयोजन अधिक बोलनेवाले के नाम है। १२ दुर्मुखः, मुखरः, अबद्धमुखः (पत्रि) 'मप्रिय बोलनेवाले' के ३ माम हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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