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यूप::] मणिप्रभाव्यास्यासहितः।। ३५३ १ 'कुलकः स्यालश्रेष्ठी २ मालाकारस्तु मालिकः ॥५॥ ३ कुम्भकार: कुलालः स्यात् ५ पलगण्डस्तु नेपकः। ५ तन्तुवायः कुविन्दः स्यात् ६ तुभवायस्तु सौषिकः ॥ ६॥ ७ राजीवधिप्रकरः ८ शखमाजोऽसिधावकः। ९ पादपर्मकारः स्याद १० व्योकारो लोहकारक ॥७॥ ११ नाडिन्धमः स्वर्णकारः कलादो रुकमकारका ।
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लक: (+कुलिकः), कुलश्रेष्ठी ( = कुल भेछिन् । २ पु), 'बाम्दानी (कीन)कारीगर' के नाम है ॥ २ मालाकार, मालिकः (२३), 'माली' के नाम है।
म्भकारः, कुलालः (पु), 'कुम्हार' के नाम हैं। • पलगण्डः, लेपक (पु), 'मकान आदिमें चूना माधि लगाने पाले जाति विशेष' नाम है।
५ सन्तुवायः ( + तन्त्रवाया, तन्त्रवापः ), इविन्दः (+कुपिन्दा ३), 'जुलाहा' अर्थात 'कपड़ा बुनने वाले' के नाम हैं।
वापा, सौचिकः (पु), 'दर्जी' के नाम हैं। • गाजीवः, चित्रकरः (२३), 'रंगसाज' अर्थात् 'कपदेको रंगने वा पापकर शिकारी आदि करनेवाले' के . नाम हैं।
काममा असिधायकः (२ पु), 'सान चढ़ानेवाले या शस्त्रों की सफाई और मरम्मत आदि करनेवाले' के नाम है ।। ..
९ पादूरुत ( + पापकृत , पादुकाकृत), चर्मकार (पु), 'चमार' .नाम
• ज्योका, बहकारकः ( + लोहकारः, अयस्कारा, अयस्करः । ) 'लहार' के नाम है।
है। नारिम्भम:, स्वर्णकार:, कला, रुकमकारका (+हक्मकार, मुष्टिका, ममुहिकः । ४३), 'सुनार' के नाम है।
१. 'कुलिक सि पाठान्तरम् ॥ २. 'तन्त्रवायः' इति 'नवा इति पागन्तरे ।।
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