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________________ ब्रह्मवर्गः ७ ] मणिप्रभाव्याख्यासहितः । १ 'क्षौरं तु भद्राकरणं मुण्डनं वपनं त्रिषु' (२४) । २ उपवीतं ब्रह्मसूत्रं प्रोदधृते दक्षिणे करे ॥४९॥ ३ प्राचीनावीतमन्दस्मिन् ४ निवीतं कण्ठलम्बितम् । मिट्टी जल सादिसे बाहरी और पञ्चगव्य पान आदिसे भीतरी पवित्रता , सन्तोष २, ला चान्द्रायण, छ, सान्तान आदि व्रत) ३, स्वाध्याय (वेदादिका अध्ययन ) १, ईश्वरमणिमात (परमेश्वरको पूजा आदि) ५, 'ये पाँच नियम है)। ३ [ौरम् , भद्राकरणम् , मुण्डनम् ( ३ न), वपनम् (त्रि), 'मुण्डन कराने के ४ नाम हैं॥ २ उपवीतम् , ब्रह्मसूत्रम् (भा० दी. | x यज्ञसूत्रम् २ न) बाये कन्धेके ऊपरसे दाहिने तरफ नीचेकी और लटकते हुए जनेऊ' के २ नाम हैं। ( 'उपवीत जनेऊको धारण करनेवालेका २ उपती ( = उपवीतिन् पु), यह । नाम है')॥ ३ प्राचीनावांतम् (न), 'दाहिने धेके ऊपर वायों तरफ नीचेको लटकते हुए जनेऊ' का १ नाम है। ('प्राचीनावात जनेऊ को धारण करने वालेका प्राची नापीती ( = प्राचीमानोतिन् पु) यह ! नाम है)। ४ निवीतम् (न) 'मालाकी तरह गर्दनसे सीधे नीचे की ओर लटकते हुए जनेऊ' का नाम है। ('निीत जनेऊ को धारण करनेवाले का निवीती ( = निवीतिन् पु) यह । नाम है')॥ १. तदुक्तं भगवत्पतञ्जलिना-'शौचसन्तोषतपःस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमा' इति यो० सू० २। ३२ ॥ २-३-४. उपवीति-प्राचीनावीति-निवीतिनां लक्षणमाद मनुस्तद्यथा 'उद्धृते दक्षिणे पाणावुपवीत्युच्यते द्विजः । सव्ये प्राचीन आवीती निवीती कण्ठसजने' ॥ १॥ मनुः ॥१५॥ छन्दोगपरिशिष्टे च 'ब्रह्मसूत्रेऽत्र सर्येऽसे स्थिते यज्ञोपवीतिता। प्राचीनावीतिताऽसम्ये कठस्थे तु निवीतिता' ॥१॥इति। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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