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________________ २५६ अमरकोषः । [द्वितीयकाण्ड-१ 'स्नातकस्वाप्लुतो घती। २ ये निर्जितेन्द्रियग्रामा यतिनो यतयश्च ते ॥१३॥ ३ यः स्थण्डिले व्रतवशाच्छेते स्थण्डिस्लशाययली । स्थाण्डिलचा ४ थ विरजस्तमसः स्युद्धयातिगाः ॥ ४४ ॥ ५ पवित्रः प्रयतः पूतः ६ 'पाखण्डाः सर्वलिङ्गिनः । स्नातकः, आप्लुता, ( + आप्लवव्रती = आप्लवव्रतिन् , आप्लुतप्रती - भाप्लुतव्रतिन् । पु), 'स्नातक' अर्थात् 'वेदवतको समाप्त होने पर गुरुकी आज्ञासे समाप्ति-सूचक स्नान-विशेष (समावर्तन) किये हुए ब्रह्मचारी' के २ नाम हैं। ('स्नातकके ३ भेद हैं-वेदको समाप्तकर और व्रतको विना समाप्त किये समावर्तन संस्कारवाला विद्यास्नातक १, व्रतको समाप्तकर और वेदको विना समाप्त किये समावर्तन संस्कारवाला व्रतस्नातक २, तथा वेद और विद्या दोनों को समाप्तकर समावर्तन संस्कारवाला विद्यावतस्नातक ३ ३)॥ २ निर्जितेन्द्रियग्रामः ( भा० दी.), यती (= यतिन् ), यतिः (३ पु), 'जितेन्द्रिय के ३ नाम हैं। ३ स्थण्डिलशायी ( = स्थण्डिलशायिन् ), स्थाण्डिल: (२३), 'स्थण्डिल ( विना साफ सुथरा की हुई अकृत्रिम भूमि )पर सोनेवाले व्रती' के २ नाम हैं। विरजस्तमाः ( = विरजस्तमस् ), द्वयातिगः (२ पु ), 'सत्त्वगुणी के २ नाम हैं। ५ पवित्रः, प्रयतः, पूतः (३ पु), 'पवित्र' के ३ नाम हैं । ६ पाखण्डः (+ पाषण्डा), सर्वलिङ्गी ( = सर्वलिङ्गिन् । २ पु), 'पाखण्डी' अर्थात् 'दुष्ट शास्त्र में स्थित बौद्ध आदि क्षपणक (संन्यासी) के २ नाम हैं। १. 'स्नातकस्वाप्लवव्रती' इति 'स्नातकस्वाप्लुतव्रतो' इति च पाठान्तरे ॥ २. 'पाषण्डाः इति पाठान्तरम् ।। १. एतत्सर्वं याशवल्क्यस्मृतावाचाराध्याये ( ११११०) मिताक्षरायां सुस्पष्टम् ।। ४. तदुक्तम्-'पालनाच प्रयोधर्मः पाशब्देन निगद्यते। तं खण्डयन्ति ते यस्मात्पाखण्डास्तेन हेतुना ॥१॥ इति ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016095
Book TitleAmar Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovind Shastri
PublisherChaukhamba Amarbharti Prakashan
Publication Year1968
Total Pages742
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size10 MB
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