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________________ अंतराल अंतराल न० वचली जगा; वचगाळो (२) अंदरनो भाग; वच्चेनो भाग अंतरि (अंत+इ) २५० वच्चे आवq; जु, पाडवू (२) आडे आवq; न देखाय तेम करवू अंतरिक्ष न० स्वर्ग अने पृथ्वी वच्चेनी जगा; अवकाश; वातावरण अंतरित वि० वच्चे आवेलं; आडमां आवेलु; छूटुं पडायेखें; न देखाय तेम करायेलु (२) ढंकायेलं; छुपायेलं; रक्षायेलं (३) अटकावायेलं; रुकावट करायेलं (४) प्रतिबिंबित (५) दबायेखें; झांखं पडेलु (६) दूर करायेलु अंतरीक्ष न० जुओ 'अंतरिक्ष' अंतरीप पुं० द्वीप अंतरीय न० अंदरनं वस्त्र अंतरे अ० अंदर; वच्चे अंतरेण अ० सिवाय; विना (२) संबंधमां; विषे (३) वच्चे; मध्ये (४) दरम्यान (५) अंतरमां; हृदयमां अंतर्गडु वि० निरर्थक; निरुपयोगी अंतर्गत, अंतर्गामिन वि० वच्चे पेठेलं (२) अंदर आवेलु (३) ढंकायेलं; छुपायेलु (४) भूली जवायेलु (५) अदृश्य थयेलु (६) नाश पामेलु अंतर्गढ वि० अंदर छुपायेलं ; गुप्त अंतर्ज्ञान न० अंदरनुं गूढ ज्ञान अंतर्योति वि० अंतरमा ज्ञानप्रकाश वाळं अंतर्दशा स्त्री० ( माणसनी स्थिति उपर) एक ग्रहनी महादशामां आवती बीजा ग्रहोनी ट्रंकी दशा (ज्यो०)। अंतर्वहन न०, अंतह पु० अंदरनी (बळतरा-पीडा) (२) सोजो। अंतार न० अंदरनुं द्वार; गुप्तद्वार अंतर्धा ३ उ० अंदर मूक-राख, (२) अंदर समावी लेवू-लई लेवू (३) दर्शावq; देखाडवू (४) छुपाव; अंतश्चर ___ नजरे न पडq (५) ढांकी देवू ; नजरे न पडे तेम कर ___-प्रेरक० अन्तर्धापयति अदृश्य करवं -कर्मणि अदृश्य श्रवं अंतर्धा स्त्री० छुपाएँ - ढंकावू ते अंतर्धान न० अदृश्य थq ते अंतनगर न० राजानो किल्लो अंतनिवेशन न० घरनी अन्दरनो भाग अंतनिहित वि० अंदर छुपायेलं अंतर्बाष्प वि० जेणे आंसु दबाव्यां छे एवं (२) आंसुथी भरेलु अंतर्भाव पुं० अंदर होवापणुं ; समावेश (२)अंतरनी वृत्ति के भाव (३) अदृश्य थर्बु ते छिन्नभिन्न थयेलं अंतभिन्न वि० वींधेलं; आंतरिक कलहथी अंतर्भत वि० समाविष्ट ; -मां समायेलं (२) अंदर रहेलं अंतर्भेद पुं० आंतरिक कलह; कुसंप अंतीम वि० जमीननी अंदरनु अंतर्मुख वि० अंदर वळेलु (२) आत्मचिंतनपरायण अंतर्यामिन् पुं० जीवात्मानुं के आंतरिक वृत्तिओनुं नियंत्रण करनारे; परब्रह्म अंतर्लोन वि० अंदर छुपायेलु (२)अंदर रहेलं अंतर्वती, अंतर्वत्नी स्त्री० गर्भिणी स्त्री अंतर्वश, अंतर्वशिक पुं० कंचुकी ; अंत: पुरनो रक्षक यज्ञभूमिनी अंदर अंतर्वेदि वि० यज्ञभूमिनी अंदर- (२)अ० अंतर्वेदि (-दी) स्त्री० गंगा-यमुना वच्चेनो दोआब [खाने हसवू ते अंतर्हास पुं० दबावी राखेखें हास्य; अंदरअंतर्हित वि० वच्चे मुकायेलं; छुटुंपडा येलं (२) ढंकायेलं; छुपायेलुं (३) ___ अदृश्य थयेलं अंतवत् वि० अंतवाळु; नाशवंत ; नश्वर अंतवेला स्त्री० मरणनो समय अंतश्चर वि० अंदर व्यापेलं; अंदर रहेलु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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