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________________ अंतराराम (३)वस्तुताए (४)अंदर (५) अंतिम रीते ('मुख्यतः' -थी ऊलटु)(६)अंशतः अंतपरिच्छद पुं० ढांकवानुं वासण । अंतपाल पुं० सरहदनुं रक्षण करनार (२) द्वारपाळ अंजनशलाका अंजनशलाका स्त्री० आंजवानी सळी अंजना स्त्री० हनुमाननी माता अंजलि पुं० खोबो; पुष्प के जळथी भरेलो खोबो (२) आदर के नमस्कार दर्शाववा हाथ जोडवा ते अंजसा अ० सीधेसीy (२) वास्तविक रीते; खरेखर (३) जलदी अंड पुं०, न० इंडं (२) वृषण (३) पेळनी कोथळी (४) मगनी नाभिमांनी कस्तूरीनी कोथळी अंडकोश (-) पुं० वृषण; पेळनी कोथळी अंडज वि० ईंडामांथी जन्मेलु अंत वि० नजीकनुं (२) छेल्लं (३) सौथी नानुं (४) सौथी हलकुं; खराब (५) रम्य ; मनोहर (६) पुं० छेडो (७) कोर; किनार; शिरोभाग (८) सामीप्य ; सांनिध्य (९) अंत; छेवट (१०) मरण ; नाश (११) निश्चय ; निर्णय (१२) अंदरनो भाग; तळियानो भाग (१३) कुल संख्या के परिमाण (१४) स्वरूप ; स्वभाव (१५)विभाग (१६) सीमा; हद (१७) छेवटनो भाग; शेष अंतक वि० नाश करनाएं (२) पुं० मृत्यु ; यम (३) सीमा; हद अंतकर, अंतकरण, अंतकारिन् वि० नाश करनारुं; अंत लावनाएं अंतकाल पुं० मरणनो समय । अंतकृत् वि० अंत लावनार-मरण लावनाएं (२)पुं० मृत्यु; यम अंतग वि० अंत सुधी जनारं; पार पामनाएं; निष्णात अंतगति वि० जुओ 'अंतगामिन् ' अंतगमन न० कार्यनी पूर्णता (२) मरण अंतगामिन् वि० मरण पामनाएं; नाशवंत अंतचर वि० सरहदे फरनारूं; सरहदे जनाउँ(२) कार्यना अंतने पहोंचनाएं अंततस् अ० अंते; आखरे (२) छेल्लेथी अंतर् अ० अंदर, बच्चे, मध्ये, अंदरना भागमां, छानु होय तेम, -बगेरे अर्थमां वपराय (समासमां अघोष व्यंजन पहेलां 'र' नो विसर्ग थई जाय) अंतर वि० अंदरन (२) नजीकन (३) निकट संबंधवाळं (४) जुएं; बहारनुं (५) न० अंदरनो भाग (६) अंतःकरण; मन; आत्मा (७) भेद; तफावत (८) वचगाळो; वच्चेनो भाग (९) आड; व्यवधान (१०) छिद्र; नबळी बाजु(११) हेतु (१२)प्रवेश (१३) समयनो गाळो (१४) अवकाश; जगा (१५) गेरहाजरी; वियोग (१६) वस्त्र (१७) प्रसंग; तक (१८) (समासमां अंते) बीजु; जुदं (उदा० 'अवस्थान्तर') (१९) -ने लगतु, -ने विष, -ना संबंधे होवु ते (२०) क्रममा एक पगथियुं वेगळु होवू ते (२१)उत्तमता;श्रेष्टता(२२)प्रतिनिधिपणु; अवेज (२३) विशिष्टता; जुदापणुं (२४) खातरी; जामीन अंतरंग वि० अंदरन (२) नजीकच् (३) अत्यंत प्रिय (४) न० चित्त ; अंतःकरण (५) निकटनो मित्र (६) अगत्यनो भाग अंतरा अ० अंदर; अंदरखाने(२)मध्यमां; वच्चे (३) मार्गमां (४)-ने मळतु,-नी बरोबरीनुं होय तेम (५) दरम्यान; वचगाळे (६) विना; सिवाय अंतरात्मन् पुं० जीव; अंतःकरण; मन अंतरापण पुं० शहेरनी मध्यमां आवेलु बजार अंतराय पुं० विघ्न ; मुश्केली ; हरकत अंतराराम वि० अंतरमां शांति के सुख __ मेळवनाएं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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