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________________ आदालन्य आदालभ्य न० निर्भयता आदितः अ० शरूआतमां; प्रारंभथी आदित्सु वि० लेवानी इच्छावाळं आदिदेव पुं० मुख्य-प्रथम देव(नारायण, विष्णु, शिव, ब्रह्मा) आदिपूरुष पुं० सृष्टिनो अधिष्ठाता (२) विष्णु (३) श्रीकृष्ण आदिभव वि० सौथी प्रथम उत्पन्न थयेलु (२) पुं० ब्रह्मा (३)विष्णु (४)मोटो भाई आदिष्टिन वि० हकम करनारं (२) पुं० शिष्य ; ब्रह्मचारी (ब्राह्मणवर्णनो) (३) प्रायश्चित्त करनारो आदृश १ प० जोवू; निहाळवू -प्रेरक० दर्शावQ [सुधी आदृष्टिप्रसरम् अ० दृष्टि पहोंचे त्यां आदेशकृत पुं० गामनो मुखी आदौ अ० प्रथम ज; प्रथमथी आद्यकालिक वि० मात्र वर्तमान जोनाएं आर्मिक वि० धर्म विरुद्धD; अन्यायी आधाराधेयभाव पुं० आधार के पात्रनो आपेली के मूकेली वस्तु साथेनो संबंध के तेना उपर थती असर आधिरथि पुं० कर्णनुं नाम आष १०प० थोभाववू; अध्धर राख, आधेय न० आधान; मूकवू ते । आनर्तपुर न० जुओ पृ० ५९९ आनर्ताः पुं० ब० व० जुओ पृ० ५९९ आनंदपुर जुओ पृ० ५९९ आनंदि पुं० आनंद; सुख । आनाह पुं० बांधवं ते (२) मळ के मूत्रनो अवरोध [प्रमाणे आनुपूर्येण अ० एक पछी एक; क्रम आनुयात्र न० अनुचर; परिवार आनुसूय वि० अनुसूयाए आपेलं आपगा स्त्री० जुओ पृ० ५९९ आपगेय पुं० नदीनो पुत्र ; भीष्म आपणवीथिका स्त्री० दुकानोनी पंक्ति; बजार आपव पुं० वसिष्ठ आयामवत् आपातदुष्प्रसह वि० जेनो हुमलो असह्य [असह्य एवं आपातदुःसह वि० पहेला हुमला वखते आपूर्ण वि० पूर्ण आप्यान वि० जाडु; मजबूत; स्थूल (२) खुश ; संतुष्ट (३)न० विकास; वृद्धि (४) प्रेम [उमर आबाल्य न० बाळपण सुध्धां (एवी) आब्रह्म अ० ब्रह्मापर्यंत; ब्रह्मा सुध्धां आभंग न० थोडीक वांकी वळेली आकृति आभीराः पुं० ब० व० जुओ पृ० ५९९ आमकुंभ पुं० काची माटीनो घडो आमज्वर पुं० एक प्रकारनो ताव (जेमां बाफ-परसेवो लाववो जोईए) आमलक न० आंबळं आमंत्रित न० वातचीत (२) संबोधन आमिक्षा स्त्री० गरम दूध अने दहींमिश्रण आमित्र वि० शत्रुपक्षीय आमीलन वि० आंखो मींचवी ते आमोदन न० आनंदित करवू ते (२) सुगंधित करवू ते आम्नातिन् वि० वेदविद् ; वेदाभ्यासी अम्नायवत् वि० परंपरागत शास्त्रज्ञानयुक्त आम्रसेकपितृतर्पणन्यायः पुं० जुओ पृ० आम्रड् -प्रेरक० पुनरावृत्ति करवी आयतलेख वि० लांबी रेखावाळं आयतायति स्त्री० लांबो वखत टकी [ते समये आयतीगवम् अ० गायो घेर पाछी फरे आयथातथ्य न० यथायोग्य- यथोचित न हो, ते आयल्लक पुं० अधीराई; उत्कंठा आयस्त वि० पीडा के त्रास पामेलु (२) ईजा पामेलुं (३) न० मोटो प्रयास आयान न० आगमन (२) स्वभाव (३) घोडानो एक शणगार आयामवत् वि० लांबू; विस्तृत _ रहेवं ते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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