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________________ आकेकर ६५८ आदाय आकेकर वि० अर्धं बंध तथा अर्धं आज्यपाः पुं० ब० व० पितृओनो एक खुल्लु एवं (आंख) वर्ग (वैश्यलोकोना) आकोप पुं० हळवो गुस्सो आज्ञाकरत्व न० दासपणु; पराधीनता आकौशल न० कुशळतानो अभाव आज्ञाभंग पुं० हुकम उथापवो ते आक्रांतितः अ० बळजबरीथी आटरूष पुं० एक वृक्ष (अरडूसी) आक्रीडपर्वत पुं० क्रीडा के विहार माटेनो आढयंकरण वि० श्रीमंत बनावनाएं (नानो के कृत्रिम) पर्वत आढयंभविष्णु वि० श्रीमंत बनतुं; आखंडलसूनु पुं० इंद्रनो पुत्र (अर्जुन) अग्रणी बनतुं आख्यात न० प्रयाण करवा माटे शुभ आतपलंघन न० ल लागवी ते मुहूर्त कहेवं ते (मंत्रेला दुंदुभिना आतपवत् वि० सूर्यनो प्रकाश पडतो ध्वनि उपरथी) होय तेवू आख्यायक वि० कहेतुं; समाचार आतपवारण न० छत्र; छत्री आपतुं (२) पुं० संदेशवाहक; दूत आतिथेयी स्त्री० परोणागत (३) छडी पोकारनारो [आपतुं आतिशयिक वि० पुष्कळ ; अतिशय आख्यायिन वि० कहेतं; समाचार आतिष्ठदग अ० गायो दोहवाय त्यां आगत न० आगमन; आवी पहोंचवं ते __ सुधी (सांज पछी कलाक के दोढ आगस्कृत् वि० अपराधी कलाक सुधी) आगस्त्यायन वि० अगस्ति संबंधी आत्मकर्मन् न० स्वकर्तव्य आगरव वि० अगरु संबंधी [ऋत्विज आत्मकृत वि० पोते करेलं आग्नीध्र पुं० यज्ञनो अग्नि सळगावनार- आत्मघातिन् वि० आत्महत्या करनाएं आग्नेय वि० अग्नि संबंधी; अग्नि- आत्मत्राण न० आत्मरक्षण (२) (२) अग्नि जेवू (३)अग्नि प्रज्वलित सिपाई; संरक्षक [होय ते करे तेवू (घी इ०) (४) जठराग्नि आत्मना सप्तम पुं० पोते जेमा सातमो वधारना; (५) न० कृत्तिका नक्षत्र आत्मलाभ पुं० जन्म; उत्पत्ति; मूळ (६) भस्म लगावीने स्नान करवू ते आत्मवत्ता स्त्री० आत्मसंयम (२) आचमनधारिन्, आचमनवाहिन् पुं० शाणपण पाणी भरनारो आत्मवर्य वि० पोताना पक्षनु - वर्गआचारधूमग्रहण न० विधि अनुसार आत्मशक्ति स्त्री० पोतानुं बळ के तेज धुमाडो श्वासमां लेवो ते आत्मसम वि० बरोबरियु; पोताना सरखं आचारलाज पुं० (ब० व०) वधाववा आत्मसंस्थ वि० आत्मामां स्थिर एवं माटे फेंकाती पाणी (राजा इ०ने) आत्मभरि वि० पेटभरं; आपमतलबी आचार्योपासना न० गुरुसेवा [ते आत्मानुगमन न० सेवामां जाते हाजर आचांति स्त्री० मों धोवा कोगळो करवो रहेवं ते आचेष्टित न० माथे लीधेलं; करेलं आत्मोदय पुं० पोतानी उन्नति आच्छादनवस्त्र न० नीचेना भाग उपर आत्रेयी स्त्री० अत्रिकुळमां जन्मेली स्त्री पहेरातुं वस्त्र (उत्तरीयथी ऊलटुं) (२) अत्रिनी पत्नी (३) सगर्भा स्त्री आच्छादिन् वि० ढांकतुं; छुपावतुं (४) रजस्वला स्त्री आच्छुरित वि० मिश्रित (२) नखना मादाय अ० लईने ('साथे' एवा अर्थमां उझरडावाळू पण वपराय छे) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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