SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 552
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ H संपराय ५३८ संप्रयुक्त संपराय पुं० युद्ध; लडाई (२) आफत संप्रज्ञात पुं० सविकल्प समाधि; मन (३) मृत्यु (४) मृत्यु बादनी स्थिति __ लीन थवा छतां ध्येय वस्तुनुं स्पष्ट संपरे (सं+परा+इ) २ आ० भेगा भान रहे एवी समाधि (असंप्रज्ञातमां मळवू; सामा मळवू (२)पार चाल्या ज्ञान अने ज्ञेयनो भेद लुप्त थई जाय छे) जवू (परलोकमां) संप्रति अ० हमणां; आ समये; तरत ज संपर्क पुं० मिश्रण (२) संयोग; स्पर्श; संप्रतिपत्ति स्त्री० आवी पहोंचq ते (२) संबंध (३)सोबत; सहवास । हाजरी (३) मेळवq ते (४)कबूलात; संपात पुं० टोळं; भीड (२) भेगा मळवू ते स्वीकार (३)अथडावं ते (४) नीचे पडq ते नीचे संप्रतिपद् ४ आ० पासे जq; पहोंचवू ऊतरवं ते (५) (बाणखें) ऊडवू ते (६) (२) मानवू; गणावू (३) कबूल थवू जवं-खसवं ते (७) खसेडवू- दूर कर, (४) कबूल करवू(५)पामवं; मेळवq ते (८)पक्षीओनी ऊडवानी एक रीत संप्रती २ प० विश्वास राखवो; मानवू (९) मोकलq ते(१०) सूर्य विषुव (२) नक्की करवू; निर्णय करवो वृत्तने ओळंगे छे अने दिवस-रात सरखां संप्रतीत वि० पाछु फरेल (२)विश्वासथाय छे ते समय (वसंत अने शरद) खातरीवाळ (३) कबूलेलं; पुरवार संपाति, संपातिक पुं० गरुडनो पुत्र अने थयेलं (४) प्रख्यात जटायुनो मोटो भाई [पडतुं संपातिन वि० साथे ऊडतुं (२) नीचे संप्रतीति स्त्री० पूरेपूरी खातरी (२) प्रख्याति ख्याल संपादक वि० संपादन करनारुं । संप्रत्यय पुं० दृढ खातरी(२)कबूलात(३) संपादन न० सिद्ध करवू ते; पूर्ण कर संप्रदा ३ उ० आप; बक्षवं (२) परंते (२) मेळवq ते (३) तैयार - शुद्ध -साफ करवू ते (जेमके जमीनने) परा चाल करवी; परंपराथी आपq संपिडित वि० एक पिंडो बनावेलु (२) (३)सोंपी देवु (४)परणावq संप्रदान न० आपी देवं ते (२) बक्षिस, संकोचेलं [पीडवू; त्रास आपवो दान (३) परणावq ते (४)बक्षिस के संपीड् १० उ० दबावq; मसळवू(२) दान- पात्र संपीड पुं० खूब दबावq - कचरवू ते (२)पीडा; त्रास (३)क्षुब्ध करवं ते संप्रदाय पुं० परंपरा; परंपरागत सिद्धांत (४) तरफ धकेलq-प्रेरवं ते (२) एक ज देवनी पूजानो धर्मसिद्धांत संपुट पुं० बखोल; खाली जगा (२) (३) रूढि; रिवाज (४) दान ; बक्षिस ढांकणवाळी पेटी [वाळी पेटी संप्रदायविगमपुं० परंपरानो लोप थवो ते संपुटका, संपुटिका स्त्री० पेटी; ढांकण संप्रधारण न०, संप्रधारणा स्त्री० विचा रणा (२) युक्तायुक्त-विवेक संपूज् १० उ० पूजq (२) भेट धरवी संपूर्ण वि० पूरुं; भरेलु (२) आखं; संप्रधृ १० उ० जाणवू; नक्की कर, (२) बधुं; पूरेपूरुं (३) सिद्ध थयेलं; पूरुं थयेलं विचारवं; चितवq (३)-उपर स्थिर संपूर्ति स्त्री० पूर्णता; संपूर्णता करवू (४) अर्पण करवू संपृक्त वि० मिश्रित (२) जोडायेखें; संप्रपद् ४ आ० जवा नीकळवू (२) संबद्ध (३) स्पर्श] (४) मित्र बनावेलु पहोंचवू (३) मंडवू; आरंभq (४) संपृच् ७ प०,२ आ० जोडवू; संबंधमां थ; बनवू लावq (२) जोडावू; संबंधमां आवईं संप्रयुक्त वि० साथे जोडेलु; झूसरीमां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy