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________________ व्यपदिश् व्यपदिश ६ प० कहेवुं; - नामथी बोलाव (२) खोटुं कहेवुं ( ३ ) ढोंग करवो (४) दर्शावबुं; जणाववुं व्यपदेश पुं० कहेवुं – जणाववुं ते (२) नाम उपनाम ( ३ ) कुळ; वंश (४) ख्याति ; कीर्ति ( ५ ) बहानुं; मिष व्यपदेशिन् वि० (समासमा ) - नी सलाहने अनुसरतुं (२) नामवाळु व्यपदेश्य वि० नामथी ओळखवा लायक व्यपनय पुं० लई जवुं - दूर कर (२) गैरवर्तणूक व्यपयान न० नासी - भागी जवं ते व्यपरुह, –प्रेरक० [व्यपरोपयति] निर्मूळ करवुं (२) रहित कर व्यपरोपण न० निर्मूळ - नाबूद करवुं ते (२) काढी मूकवुं ते (३) तोडी लेवुं - कापी नाखवुं ते व्यपवृत् १ आ० पाछा फरवुं ( २ ) तजवुं; छोडी देवुं व्यपश्चि १ उ० विनंती करवी व्यपाय पुं० अभाव ( २ ) अंत; लोप व्यपाश्रम पुं० आशरो; आधार व्यपाश्रयणा स्त्री० विनंती व्यपास्त वि० काढी मूकेलं; हांकी काढेलुं; दूर करेलु व्यपे (वि + अप + इ) २ प० जुदा पडवु; छूटा पडवुं ( २ ) - थी मुक्त थबुं व्यपेक्ष १ आ० अपेक्षा राखवी ( २ ) दरकार राखवी; गणनामां लेवुं व्यपेक्ष वि० अपेक्षा राखतुं; उत्सुक (२) निरपेक्ष (३) गणनामा लेतुं व्यपेक्षक वि० निरीक्षण करनाएं; लक्ष राखनारुं व्यपेक्षा स्त्री० अपेक्षा; आकांक्षा (२) आदर; लक्ष; काळजी (३) अरसपरस संबंध के आधार व्यपेत वि० छूटुं पडेलुं ; दूर गयेलुं (२) ऊल (३) अनीतिमान Jain Education International ४८४ व्यवच्छिद व्यपोढ वि० हाँकी काढेल; दूर करेलु (२) विरुद्ध; ऊलटं (३) दर्शाविलुं व्यपोह १ उ० धोई काढवु प्रायश्चित्त करवुं (२) हांकी काढवु; दूर कर व्यपोह पुं० हांकी काढवु - दूर करते (२) समूह (३) इनकार; नकार व्यभिचर १ प० उल्लंघन करवु; बेवफा नीवडवुं ( २ ) अपराध करवो (३) मार्ग के नियमथी ऊलटा जब व्यभिचार पुं० मार्ग, मर्यादा के नियमथी भ्रष्ट थवं ते; उल्लंघन; भंग ( २ ) अपराध ; दोष (३) बेवफापणुं ( ४ ) नियममां अपवाद - अनियमितता व्यभिचारिन् वि० मर्यादा के नियमनुं उल्लंघन करतुं (२) अनियमित ( ३ ) खोटुं; जूठु (४) बेवफा (५) स्वच्छंदी (६) अस्थिर; बदलाय तेवुं व्यभिचारिभाव पुं० रसनी उत्पत्तिमां जे स्थायी भावने पुष्ट करी चाल्यो जाय छे ते क्षणिक भाव व्यभीचार पुं० जुओ 'व्यभिचार' व्यय् १० उ० [ व्यययति - ते ] जवं; गमन करवुं (२) खर्चवं; आपी देवूं (३) १ उ० [ व्ययति - ते ] जवुं ( ४ ) १० उ० [ व्यापयति - ते ] फेंकवुं (५) हांकबुं व्यय वि० बदलाय तेवुं ; नाश पामे तेवुं (२) पुं० नाश (३) खर्च ( ४ ) विघ्न (५) किंमत ; बलिदान (६) उडाउपणुं ७) धन; मिलकत व्ययगुण वि० खरचाळ; उडाउ व्ययपर वि० उडाउ अर्थहीन व्यर्थ वि० निरुपयोगी; फोगट ( २ ) व्यलीक वि० खोटं; जूठु (२) अप्रिय (३) जूटुं नहि तेवुं (४) न० अप्रिय - प्रतिकूल एवं ते (५) दुःख-शोकनुं कारण एवं ते ( ६ ) अपराध; दोष (७) युक्ति; छेतरपिंडी ( ८ ) पाप व्यवच्छिद् ७ उ० कापी नाखवं; छूटुं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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