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________________ ४७० विषदिग्ध विषदिग्ध वि० झेरथी खरडेलु; झेरी विषद्रुम पुं० झेरी वृक्ष विषधर, विषभुजंग, विषभृत् पुं० साप विषम वि० खरबचईं; खाडा टेक रावाळं (२) अनियमित; असमान (३) एकी (संख्या) (४) मुश्केल (५) दुर्गम (६) वांकु (७) त्रासजनक (८) भयंकर (९) प्रतिकूळ (१०) एकांतरं (११) पुं० एक ताल (संगीत०) (१२) न० खाडा टेकरावाळं स्थान (१३) दुर्गम स्थळ (१५) संकट; मुश्केली विषमज्वर पुं० आंतरे आवतो ताव विषमपत्र पुं० सप्तपर्ण वृक्ष विषमशर पुं० जुओ 'विषमेषु' विषमशील वि० चीडियु (२) पुं० विक्रमादित्य राजा विषमायुध पुं० कामदेव (पांच बाणो वाळो होवाथी) विषमावतार पुं० खाडा-टेकरावाळी जमीन उपर ऊतरवू ते (२) साहस करवं ते विषमित वि० वांकु; सरखं नहि तेवू (२) भवां चडावेलु (३) दुर्गम बनावेलं विषमीभ १ ५० विषम बनवू (२) ठोकर खावी; आमतेम पडवू विषमुच् पुं० साप, विषमेक्षण पुं० शिव (त्रण लोचनवाळा) विषमेषु पुं० कामदेव (पांच बाणवाळो) विषय पुं० दरेक इंद्रियनो ग्राह्य के भोग्य पदार्थ (२) लौकिक वस्तु के व्यवहार (३)सांसारिक भोग; कामभोग (४) पदार्थ (५) लक्ष; ध्येय (६) गोचर; क्षेत्र (७) वस्तु; प्रकरण; मुद्दो; बाबत (८) स्थान स्थळ (९) प्रदेश; देश; राज्य (१०) आश्रयस्थान विषयक वि० कोई बाबतने लगतुं (२) विषय के वस्तुवाळं; ते वस्तुने चर्चतुं विषाणी विषयग्राम पुं० भोगविषयोनो समूह विषयपराङ्मुख वि० लौकिक व्यव हारो तरफ वैराग्यवाळं। विषयस्नेह पुं० विषयोमा आसक्ति विषयाधिकृत पुं० प्रदेश के प्रांतनो सूबो विषयाधिपति पुं० राजा . विषयाभिरति स्त्री०,विषयाभिलाष पुं० भोगविषयमां आसक्ति विषयिन् वि० विषयभोगने लगतुं (२) पुं० विषयासक्त पुरुष (३) कामदेव (४) राजा (५) विषयोनुं ज्ञान करनारो-जीवात्मा विषयषिन् वि० विषयासक्त विषयोपसेवा स्त्री० विषयासक्ति विषरस पुं० झेरी प्रवाही विषवृक्ष पुं० झेरी वृक्ष विषवेग पुं० झेरनुं पसरवू ते; झेरनी असर विषवैद्य पुं० मंत्रथी झेर उतारनारो (२) झरनी दवा वेचनारो विषव्यवस्था स्त्री० झेर देवायुं होय तेवी अवस्था (२) झेरनी असर विषह ('वि+सह') १ आ० सहन करवू (२)सामनो करवो; टकी रहेQ (३) शक्तिमान थq विषहृदय वि० झेरी हृदयवाळं ; झेरीलं विषह्य वि० सहन करी शकाय तेवू (२) सामनोकरी शकाय-जीती शकाय तेQ विषंज १ प० [विषजति चोटाडवू; वळगाडवू; लटकाव विषाक्त वि. विष चोपडेलं ; झेरी विषाण पुं०, न० शिंगडु (२) हाथी के सूवरनो दंतूशळ (३) फूंकीने वगाडवानुं शिंगडाना आकार- वाद्य (४)शिखर ; टोच विषाणिन् वि० मोटा दंतूशळ के शिंगडावाळं (२) पुं० तेवू प्राणी (३)हाथी (४)आखलो विषाणी स्त्री० जुओ "विषाण' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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