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________________ विषाद विषाद पुं० खेद; दिलगीरी (२) हताशा; निराशा (३) ग्लानि ; सुस्ती विषादिन् वि० हताश; उदास; खिन्न विषुव न० मेष अने तुलामां संक्रांति (ज्यारे दिवसरात सरखां होय छे) विषुवसमय पुं० संक्रांतिनो काळ विचिका स्त्री० कोगळियु; 'कॉलेरा' विष्क पुं० २० वर्षनी उमरनो हाथी विष्कं ५, ९ प० दखल करवी (२) टेको आपवो विष्कंभ पुं० दरवाजानो आगळो (२) विस्तार; लंबाई (३)जओ 'विष्कंभक' विष्कंभक पुं० बे अंको वच्चे आवतो भाग, जेमा हलकां के मध्यम पात्रो नाटकनी वातोने अने वस्तुना विभागोने वच्चे शं बनी गयुं ते टूकमां कही बतावीने जोडी आपे छे (नाटय०) (२)विस्तार; लंबाई विष्किर पुं० विखेरवु ते; खोतर - खणवू ते (२) कूकडो वगेरे पंखी विष्टप पुं०, न० लोक ; भुवन विष्टपहारिन् वि० जगतने खुश करनारं विष्टब्ध ('विष्टंभ्' न भू० कृ०) वि० टेकवेलं; स्थिर करेलु (२) रोले३) जड-अक्कड बनेलं . विष्टर पुं० आसन; बेठक (२) कुशदाभनी पूळी (३) कुशन बनावेलं तपस्वीन आसन विष्टरभाज वि० बेठक उपर बेठेलं विष्टरश्रवस् पुं० विष्णु ; कृष्ण विष्टंभ ('वि+ स्तंभ') ५, ९ प० रोकवू; अटकावq (२) टेको लेवो (३) टेको आपवो (४) व्यापq (५) निश्चित - स्थिर करवं -प्रेरक० रुकावट करवी (२)जडअक्कड बनाव विष्टंभ पुं० स्थिर - दृढ करवू ते (२) नडतर; विघ्न (३) लकवो (४)टेको (५) सहन करवू ते; सामनो करवो ते विसर्प विष्टा स्त्री० विष्ठा; मळ विष्टि स्त्री० धंधो; उद्योग (२) वेतन (३) वेठ (४) मोकलq ते मालिक विष्टिकर पं० वेठियाओनो-गलामोनो विष्टिकर्मान्तिक पुं० वेठियो विष्ठा स्त्री० मळ; विष्टा (२)पेट विष्ठित वि० स्थित (२) हाजर के नजीक होय तेवू विष्णु पुं० ब्रह्मा-विष्णु-महेश्वर ए त्रिमूर्तिमांना बीजा देव, जे जगतनुं पालन करे छे तथा अवतारो ले छे विष्णुगुप्त पुं० चाणक्य [क्षीरसागर विष्णुपद न० आकाश; अंतरिक्ष (२) विष्णुपदी स्त्री० गंगा नदी विष्फार पुं० धनुषनो टंकारव विष्यद् १ आ० वहे; टपकवू विष्यंद पुं० वहेवू - टपकवू ते विष्वक अ० बधे ठेकाणे; बधी बाजुए विष्वक्षेण, विष्वक्सेन पुं० विष्णु विष्वग्गति वि० सर्वव्यापी; दरेक विषयमा प्रवेशवाळू विष्वच वि० व्यापक विष्वद्रयच, विष्वद्रचंच वि०. बधी बाजु जतुं - पहोंचतुं; सर्वव्यापी विष्वंच वि० जुओ 'विष्वच्' विसर पुं० मोटो जथो; ढ़गलो (२) टोळं (३)फेला, ते विसर्ग पुं० छोडवू – काढवू - फेंक ते (२)वरसावq ते (३)आपी देवं ते; दान (४) विदाय आपवी ते (५) सर्जन; सृष्टि (६) त्याग (७) मळत्याग करवो ते (८) सृष्टि-व्यापार विसर्जन न० काढq - फेंक - वरसावq ते (२) आपी देवू ते; दान (३) मळत्याग करवो ते (४) त्याग करवो ते (५) विदाय आपवी ते (६) सर्जन विसर्प पुं० सरकवू - खसवू ते (२) आमतेम फरवु ते (३) फेला, ते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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