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________________ विधाति ४६९ विषद विधाति स्त्री० आराम; विसामो (२) विश्वसृज् पुं० ब्रह्मा (२) मयासुर थोभवू- अटकवू ते. विश्वस्त (विश्वस्' नुं भू० कृ०)-मां विश्रुत वि० प्रख्यात; प्रसिद्ध (२) विश्वास मूक्यो होय तेवु (२)विश्वास न० प्रसिद्धि; ख्याति राखतुं (३) नीडर; खातरीवाळू (४) विधुति स्त्री० ख्याति; प्रसिद्धि विश्वास मूकवा योग्य विश्लथ वि० शिथिल'; ढीलुं (२) विश्वस्ता स्त्री० विधवा सुस्त; नमी गयेलं विश्वंभर वि० बधाने पोषनारु (२) विश्लिष् ४ ५० छूटा पडवू(२)छूटी के पुं० परमात्मा (३)विष्णु (४) अग्नि तूटी जQ [करवू विश्वंभरा स्त्री पृथ्वी [ब्रह्मा -प्रेरक० छूटा पाडवू (२)-रहित विश्वात्मन् पुं० परमात्मा(२)शंकर(३) विश्लिष्ट वि० छूटुं पडेलु के पाडेलु विश्वाधार पुं० जगतनो आधार (२) ढीलुं करेलु (३) ऊतरी गयेलं विश्वामित्र पुं० एक प्रसिद्ध मुनि (अवयव) विश्वास पुं० भरोसो; श्रद्धा; पतीज विश्लेष पुं० वियोग विश्वासघात पुं० विश्वासनो भंग विश्लेषित वि० छूटुं पडेलु - पाडेलु करवो ते (२) फाडी-चोरी नाखेलं विश्वासपात्र न. रासापात्र माणस विश्व वि० आखं; समग्र (२) दरेक; विश्वासभंग पुं० जुओ 'विश्वासघात' तमाम (३)व्यापक (४) पुं० ब०व० विश्वासभूमि पुं० विश्वासपात्र माणस अमुक वर्गना दश देवो (५) पुं० विश्वेदेवाः पुं० ब० व० अमुक दश जीवात्मा (५) न० समग्र जगत देवोनो वर्ग विश्वकर्मन् पुं० देवोनो शिल्पी (२) सूर्य विष स्त्री० विष्टा (२) कन्या विश्वजनीन, विश्वजनीय, विश्वजन्य विष न० झेर (२) पाणी (३) कमळवि० समग्र मानव जात माटे हितकर तंतु (४) झेरी हथियार विश्वजित पुं० एक यज्ञ विषकुंभ पुं० झेर भरेलो घडो :: विश्वतस् अ० चोतरफ; बधी बाजुथी विषकृत वि० झेर भेळवेलुं .. . विश्वतोमुख वि० दरेक बाजुए मुखवाळं विषक्त ('विषंज्' नुं भू० कृ०) बराविश्वपा पुं० बधानो रक्षण करनारो बर चोटाडेलु (२) बराबर वळगेले (२) अग्नि (३) सूर्य (४) चंद्र (३) लटकावेलु (४) उत्पन्न करेलु विश्वमूर्ति वि० बधां रूपो धरनारूं; (५) रोकायेलं; लीन सर्वव्यापी विषघ्न वि० झेरनो नाश करनाएं; विश्ववेदस् वि० सर्वज्ञ (२) ऋषि एवं झरनी असर दूर करनारु । विश्वव्यापक, विश्वव्यापिन् वि० सर्व- विषण्ण ('विषद्' नुं भू० कृ०) वि० व्यापक एवं उदास; खिन्न ; हताश विश्वस् २ प० विश्वास राखवो के मूकवो। विषण्णमुख वि० खिन्न मुखवाळू . . (२) नचिंत के डर विनाना थy विषण्णरूप वि० खिन्न; उदास -प्रेरक० विश्वास ऊभो करवो विषद् १ प० [विषीदति] खिन्न थq; विश्वसनीय वि० विश्वास करवा हताश थवू; दुःखित थर्बु (२) डर लायक (२) विश्वास ऊभो करे ते विषद पुं० मेघ सं.ग.-३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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