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________________ विनीत ४५६ विपन्नदीधिति विनीत वि० लई जवायेलं; दूर करा- विप् १० उ० फेंकवु (२) १ आ० भ्रूजवू; येलु (२) सुशिक्षित; तालीम पामेलं __कंपवू [विकसेल; परिपूर्ण थयेलं (३) सभ्य ; शिष्टाचारवाळू (४)नम्र; विपक्व वि० पूरेपूरुं पक्व थयेलं (२) विनयी (५) काढी मूकेलं; मोकली विपक्ष वि० सामा पक्षद्; विरोधी; दीधेलु (६) केळवेलु (७) शिक्षा करी वेरी (२) पुं० दुश्मन; सामावाळियो होय तेवू (८) संयमी (९) सुंदर (३)हरीफ स्त्री के शोक (४)चर्चामां (१०) फेलावेलु; पाथरेलु सामो पक्ष लेनारो (५) निष्पक्षता; विनीतवेष पुं० सादो पोशाक निरपेक्षता विनीति स्त्री० शिष्टाचार (२) आदर विपक्षभाव पुं० शत्रुवट; वेरभाव विनुद् ६ प० भोंकवु (२) (वीणा विपक्षरमणी स्त्री० हरीफ स्त्री (प्रेममां) वगेरे) वगाडq (३) दूर करवू विपच १ प० परिपक्व थवू; परिणत -प्रेरक० हांकी काढ; दूर करवू .. थq; फळ नीपजवु (२) पचावq (३) (२) व्यतीत कर (समय) (३) बाफ; पकाव आनंद पमाडवो (४) आनंद मानवो विपट् १० उ० फाडी काढवू; चीरी विनतृ पुं० नायक; नेता (२) गुरु; नाखवू (२)खेंची काढवू; निर्मूळ करवू शिक्षक (३) राजा (४) शासक; (३) खुल्लं करवू (४) हांकी काढवू शिक्षा के सजा करनारो विपण १५० वेचवं (२) होड बकवी विनय पुं० शिष्य विपण पुं०, विपणन न० वेचाण ; वेचवं विनोद पुं० दूर करवं ते (२) आनंद; ते(२) नानो वेपार (३)नानं बजार के रमत; क्रीडा करवं ते हाट (४)सोदो [माल (३)वेपार विनोदन न० क्रीडा; खेल (२) दूर विपणि स्त्री० बजार (२) वेचवानो विनोदरसिक वि० सुख - आनंदमां विपणिन् पुं० वेपारी; दुकानदार प्रीतिवाळं विपणी स्त्री० जुओ 'विपणि' [समय [दूर करेलु विपत्काल पुं॰आपत्तिनो समय;दुर्भाग्यनो विनोदित वि० आनंद पमाडेलं (२) विपत्ति स्त्री० आफत; मुश्केली (२) विन्न ('विद्' - भ०कृ०) वि० जाणेलं मोत; विनाश (३) यातना (४) अंत (२) मळेलं; मेळवेल (३) चर्चेल; तपासेलु (४) मूकेलं; स्थापेलं (५) (५) पुं० वीर पायदळ सैनिक विपत्तिकाल पुं० जुओ 'विपत्काल' परणेलं विपथ पुं० आडो मार्ग; अवळो मार्ग विन्यस् ४ प० मूकवू (२) -तरफ विपद् ४ आ० निष्फळ जवं; शून्य प्रेर; -मां लगाडवू (३) थापण परिणाम आवq (२) आपत्ति-दुर्भातरीके सोपवू (४) गोठवQ ग्यमां आवी पडद् (३) अपंग के विन्यस्त वि० मूकेलं; नीचे मूकेल (२) अशक्त थq (४)मरीजवं; नाश पामवं जडेलं; बेसाडेलु (३) गोठवेल (४) विपद, विपदा स्त्री० विपत्ति ; आफत; थापण तरीके मूकेलं (५) न० गोठ- मुश्केली (२) मोत वणी: स्थापना विपन्न ('विपद्' न भू० कृ०) मृत (२) विन्यास पुं० थापण तरीके सोंपवं ते; नष्ट (३) आपद्ग्रस्त (४) अशक्त; थापण (२) गोठवणी; रचना (३) मछित होय ते (अवयवोनी) स्थापना (४) प्रदर्शन विपन्नदीधिति वि० जेनुं तेज चाली गयं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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