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________________ ४०७ राक्षस रहस् न० एकांत स्थान; गुप्तस्थान (२) रंघस् न० वेग; झडप निर्जनस्थान (३)गुप्त वात; रहस्य रंज १,४ उ० राता रंगवाळु थर्बु (२) रहस्य वि० छार्नु; गुप्त (२)न० गुप्त रंगवू (३) प्रेममां पडवू (४) खुशी वात (३)गुप्त मंत्र के प्रयोग (अस्त्रनो) थवू; राजी थQ (४) गूढ सिद्धांत (५) उपनिषद -प्रेरक० रंगवू (२) खुश करवू रहस्यम् अ० गुप्त रीते; छानी रीते (३) मनावी लेवं रहस्याख्यायिन् वि० गुप्त वात कहेतुं रंजक वि० रंग करनाएं (२) राग के रहाट पुं० अमात्य (२) झरj (३) पिशाच प्रीति उत्पन्न करनारु (३)खुश करनारं रहित वि० तजायेखें (२) छूटुं पडेलं; रंजन वि. रंगनारुं (२)खश करनाएं विनानुं बनेलं (३) एकलुं (४) न० (३)न० रंगवू ते (४)रंग (५) राजी एकांत गुप्तस्थान [बेठेलु करवू ते; संतुष्ट करवू ते रहीभूत वि. एकांतमां के खानगीमां रंजित वि० रंगेलुं (२) खुश थयेलु रंक वि० दरिद्र ; दीन (२)पुं० भिखारी रंड वि० अपंग बनेलं (२) बेवफा (३) भूखे मरतो माणस रंडास्त्री० विधवा (२) वेश्या रंकु पुं० हरण; मृग रंतव्य वि० रमवा के क्रीडा करवा योग्य रंग पुं० रंग; वर्ण (२) राग; प्रीति (३) (२) न० क्रीडा; उपभोग; रमत रंगभूमि(४)रणभूमि (५) अखाडो (६) रंतिदेव पुं० एक चंद्रवंशी राजा (मोटा प्रेक्षकगण ; सभासदो (७)नाच; नृत्य; पशुयज्ञो करनार) खेल (८)पुं०, न० कलाई रंप ४ प० जुओ 'रध' रंगदेवता स्त्री. रणभूमि के अखाडो रंधन न०, रंघि स्त्री० ईजा करवी वगैरेनी अधिष्ठाता देवी। के नाश करवो ते (२) रांधq ते रंगपीठ न० नृत्यभूमि रंध्र न० छिद्र ; काणुं ; फाट (२)ज्यांथी रंगप्रवेश पुं० अभिनय माटे पात्रनुं हुमलो करी शकाय तेवी नबळी जगा रंगभूमि उपर दाखल थर्बु ते । (३) दूषण; दोष (४) तोफान , रंगबीज न० रू' [रणक्षेत्र रंध्रप्रहारिन वि० नबळे स्थाने हुमलो रंगभूमि स्त्री० नाटकनो तख्तो (२) करनारं [नबळ स्थान शोधनाएं रंगमंडप न० नाटकशाळा रंध्रानुसारिन्, रंध्रान्वेषिन् वि० छिद्र के रंगवाट पुं० नाटक, नृत्य वगेरे माटे रंभा स्त्री० केळ (२) गौरी (३) एक आंतरेली जगा अप्सरा (४) बांघडवू के बराडव ते रंगसंगर पुं० रंगभूमि उपर हरीफाई रंभोरु वि० केळना जेवी मनोहर रंगाजीव पुं० नट (२) रंगरेज - भरेली- जांघवाळु; सुंदर ... रंगावतरण न० रंगभूमि उपर प्रवेश रंह, १ प० जलदी गति करवी; करवो ते (२) नटनो धंधो उतावळ करवी (२) वहेवू . रंगावतारके, रंगवतारिन् पुं० नट रहस न० वेग; झडप रंगांगण (-न) न० अखाडो; हरीफाई राका स्त्री० पूर्णिमा; पूनमनी रात वगेरे थवानां होय ते स्थान राकाचंद्र, राकापति, राकारमण, राकेश रंगोपजीविन पुं० रंगरेज पुं० पूर्ण चंद्र रंघ १ उ० जq; वेगथी जq (२) राक्षस वि० राक्षसचें; राक्षसी (२) पुं० १० उ० प्रकाश, (३)बोलवू दानव; दैत्य; असुर (३) विवाहना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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