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________________ रविवंश } रश्मिमुच ; रविवंश पुं० सूर्यवंश ( राजाओनो) रशना स्त्री० जुओ' रसना रश्मि पुं० दोरडुं; दोरो (२) लगाम (३) परोणो; चाबुक (४) किरण (५) पापण रश्मिग्राह पुं० सारथि रश्मिमत्, रश्मिमालिन्, रश्मिवत् पुं० सूर्य रस् १ ५० बूम पाडवी; अवाज करवो (२) रणकवुं ( ३) १० उ० स्वाद लेवो; चाखवं; अनुभववुं (४) चाहवुं रस पुं० प्रवाही द्रव ( २ ) झाड वगेरेनुं घटक प्रवाही (३) पाणी ( ४ ) स्वाद (५) स्वाद माटेनो पदार्थ (६) कोई पण बाबत माटेनी रुचि ( ७ ) प्रेम; स्नेह (८) आनंद (९) काव्य जोवासांभळवाथी स्थायी भावोनो उद्रेक थतां थतो अलौकिक आनंद (शृंगार, हास्य, करुण, वीर, रौद्र, भयानक, अद्भुत, बीभत्स अने शांत ए नव प्रकारनो) (१०) सार; सत्त्व ( ११ ) पारो; पारा वगेरे घातुनी भस्म (१२) जीभ (१३) शरीरनी घटक सात धातुओमांनी प्रथम; अन्ननुं प्रथम रूपांतर (१४) झेर; झेरी पेय रसक न० मांसनो सेरवो रसज्ञ वि० रसनी कदर -परख करनाहं ( २ ) पुं० वैद ( ३) कीमियागर रसज्ञा स्त्री० जीभ रसद पुं० वैद्य रसन न० चीस पाडवी ते; अवाज करवो ते; रणकार (२) मेघगर्जना ( ३ ) स्वाद (४) जीभ (५) अनुभव - जाण रसना स्त्री० दोरी; दोरडुं ( २ ) लगाम (३) स्त्रीनी कटिमेखला के कंदोरो (४) जीभ ( ५ ) स्वादनी इंद्रिय रसप्रबंध पुं० काव्य के नाटकनी रचना रसमय वि० रसात्मक; रसनुं बनेलुं (२) रसवाळु प्रवाही ( ३ ) सुंदर, मनोहर (४) प्रेममांथी नीपजतुं Jain Education International ४०६ रहस् रसवत् वि० रसभयुं (२) स्वादु (३) सुंदर ( ४ ) प्रेमभयं (५) भेजभयं रसवती स्त्री० रसोडुं (२) रसोई रससिद्ध वि० काव्य के रसनुं जाणकार रसा स्त्री० एक पाताळ; नरक ( २ ) भूमि ; जमीन (३) जीभ रसातल न० सात पाताळोमांनुं एक (२) नरक ( ३ ) जमीन; भूमि रसात्मक वि० रसनुं बनेलु; रसवाळु (२) स्वादवाळं (३) अमृतमय ( ४ ) प्रवाही (५) सुंदर; मनोहर रसाधिक वि० रसाळ; स्वादु ( २ ) आनंदोथी भरेलु ; भोगपदार्थोथी भरपूर रसायन न० वृद्धावस्थाने अटकावनार तथा आयुष्य वधारनार कोई पण औषधि ( २ ) ए प्रमाणे आनंद के तृप्ति आपनार कोई पण वस्तु रसाल पुं० आंबो (२) न० छाशनी एक बनावट (३) धूप रसालवनी स्त्री० आंबावाडी; आंबातुं वन रसालसाल पुं० आंबा झाड रसाला स्त्री० जीभ (२) दहींनी एक मीठी वानी (३) दूर्वा ; दरो ( ४ ) द्राक्ष रसास्वाद पुं० रस चाखवो ते (२) काव्यनो रस माणवो ते रसांतर न० बीजो स्वाद (२) बीजो भाव के रस ( ३ ) बीजो आनंद रसिक वि० स्वादु रसभर्यु ( २ ) सुंदर ( ३ ) रसनुं कदरदान (४) -मां रस लेतुं -मां आसक्त ( सनासने छेडे) (५) पुं० रसनी कदरवाळो (६) भोगासक्त - कामुक पुरुष रसित ( ' रस्' नुं भू० कृ० ) वि० चाखेलुं (२) रसयुक्त (३) अस्पष्ट अवाज करतुं (४) न० बूम; अवाज ( ५ ) गर्जना रस्य वि० रसभयुं; स्वादु रह, १ प०, १० उ० तजी देवुं रहण न० तजी देवूं ते रहसू अ० छानी रीते; गुप्तपणे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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