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________________ रथकर ४०५ रवितनय रथकर, रथकार पुं० सुतार र १ आ० आरंभ करवो (२)आलिंगन रथकुटुंबिन् मुं० सारथि करवु (३) उत्सुक थर्बु (४) साहस करवू रथकबर पुं०, न० रथनो धोरियो रभस वि० झननी; जस्सावाळं (२)तीव्र; रथक्षोभ पुं० रथमां आवतो आंचको गाढ (३)अविचारी; साहसिक (४)पुं० रथचरण पुं० रथ, पै९ (२) सुदर्शनचक्र जुस्सो; वेग (५)साहस ; अविचारीपणुं (३) चक्रवाक पक्षी [करवी ते (६)गुस्सो (७) खेद; दिलगीरी (८) रथचर्या स्त्री० रथमां बेसी मुसाफरी आनंद ; हर्ष (९)तीव्र इच्छा; उत्सुकता रथपाद पुं० जुओ 'रथचरण' रम् १ आ० आनंद पाम आनंद माणवो रथपुंगव पुं० उत्तम योद्धो (२) -मां रत थर्बु -थी हर्ष पामवो रथशक्ति स्त्री० रथनी ध्वजानो दंड (३) क्रीडा करवी (४)संभोग करवो रथशिक्षा स्त्री० रथ हांकवानी विद्या (५) विरम; थोभवं रथारथि अ० रथ सामे रथ आवी जाय रमण वि० आनंद आपनाएं; मनोरंजक; तेम (नजीक नजीक, युद्ध) मनोहर (२)पुं० प्रियतम; पति (३) रथांग पुं० चक्रवाक पक्षी (२)न० रथ- कामदेव (४)न० संभोग; रतिक्रीडा चक्र के पैडु (३) रथनो कोई पण भाग रमणी स्त्री० सुंदर जुवान स्त्री (२) (४) चक्र (खास करीने विष्णुर्नु) (५) पत्नी; प्रियतमा (३) कोई पण स्त्री कुंभारनो चाकळो रमणीय वि० मनोहर; सुंदर रथांगपाणि पुं० विष्णु (सुदर्शन-धारी) रमा स्त्री प्रियतमा; पत्नी (२) लक्ष्मी रथिन् वि० रथ- मालिक (२) रथ देवी; समृद्धिनी देवी (३) सद्भाग्य हांकनारुं (३) रथमां बेसनारु (४)पुं० (४) शोभा (५) संपत्ति रथवाळो (५) रथमां बेसी लडनारो रमाकांत, रमानाथ, रमापति पुं० विष्णु रथेश पुं० रथमां बेसी लडतो योद्धो रम्य वि० सुंदर; रमणीय (२)प्रिय; रथेशा (-षा) स्त्री० रथनो धोरियो सुखकर; मनगमतुं रथोपस्थ पुं० रथनी बेठक रम्या स्त्री. रात्री रथ्य पुं० रथनो घोडो (२) रथनो भाग रम्यांतर वि० वच्चेनां स्थान रम्य के रथ्यचय पुं० घोडाओनी टुकडी मनोहर करायां छे तेवू रथ्या स्त्री० रथ जाय तेवो मार्ग - रय पुं० नदीनो प्रवाह (२)वेग; झडप धोरी मार्ग (२)घणा रस्ता भेगा थता (३) खंत; उत्सुकता [अन्न होय ते स्थान (३) रथोनो समुदाय रयि पुं०. न० पाणी (२)संपत्ति (३) रथ्यापंक्ति स्त्री० शेरीओनी पंक्ति रल्लक पुं० ऊननुं वस्त्र; कामळो (२) रथ्यामुख न० रस्तानो प्रवेशभाग पापण (३) एक जातनो मृग रद पुं० चीर ते (२) खणq ते (३) दांत रव पुं० चीस; बूम; गर्जना (२) रदखंडन न० दंतक्षत; दांत बेसाडवा ते पंखीओनो कलरव (३) अवाज रदन पुं० दांत (२) न० -चीर के रवण वि० चीस पाडतुं; गर्जतुं ; अवाज खण, ते करतुं (२) पुं० ऊंट (३) कोयल र ४ ५० ईजा करवी; मारी नाखवं (४) भमरो -प्रेरक० [रंधयति] ईजा करवी; रवि पुं० सूर्य (२) आकडा, झाड पीडq (२) रांधवं रवितनय पुं० कर्ण (२) शनिग्रह सं. ग.-२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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