SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४ अपक्षपात · अपध्वंस अपक्षपात पुं० निष्पक्षपातपणुं अपटीक्षेप पुं० पडदो उछाळवो ते अपक्षय पुं० क्षय थवो ते; क्षीण थवं ते (उतावळमां के गभराटमां) अपगत वि० चाल्युं गयेलं; खसी गयेल; अपत्य न० संतान; बाळक '-थी रहित; -विनानुं अपत्रप् १ आ० शरमावू अपगति स्त्री० दुर्गति ; दुर्दशा । अपत्रप वि० बेशरम अपगम् १ प० अपगच्छति जतुं रहेQ अपनपा स्त्री. शरम (२) पसार थQ - वीतQ (समयनु) अपथ वि० मार्गरहित (२) पुं०, न० मार्गनो अभाव (३) कुमार्ग अपगम पुं० जतुं रहेq ते;वियोग २ मृत्यु अपघात पुं० हणवू ते (२) निवारवु ते अपथ्य वि० अयोग्य ; अहितकर (२) (३) कुमरण कुपथ्य अपचय पुं० ओछु थq ते (२) नुकसान अपद वि० पग वगरन (२) स्थान के अपचर १५० विदाय थर्बु (२) उल्लंघन होद्दा विनानु (३)पु० सापनी पेठे पेटे चालनार प्राणी (४) न० अयोग्य स्थळ करवू; आडे मार्गे जq अपचरित वि० गयेलं; मृत (२) न० (५) स्थाननो अभाव (६) आकाश अपदश वि० दशथी दूर- (२) छेडोअपराध ; दोष किनारी (‘दशा') विनानु (वस्त्र) अपचायिन् वि० योग्य संमान न करतुं अपदान न० परिशुद्ध आचरण; महान अपचार पुं० विनाश;अभाव २ अपराध; दोष (३) कर्मना लोपथी प्राप्त थनारो कृत्य (२) भूतकाळ के भविष्यकाळनां तेवां सत्कृत्योर्नु वर्णन करतो ग्रंथ दोष(४) अपकार; खराब आचरण (५) अपदार्थ पुं० मिथ्या-असत् वस्तु (२) कुपथ्य शब्दार्थ नहीं ते अपचि ३५० सन्मानवू; आदर करवो अपदांतर वि० तरत पछीनुं (२) ५ उ० एकळु करवू; वीणवू अपदिश् ६५० उल्लेख करवो; दर्शाव -कर्मणि० क्षीण थq; ओछु थर्बु (२) बहानुं काढवू; ढोंग करवो (२) -थी रहित बनवं अपदेश पुं० कथन; उल्लेख(२)मिष;बहार्नु अपचित वि० क्षीण थयेलु (२) आदर (३) हेतु दर्शाववो ते (४) खराब स्थान पामेलु; संमानित अपदेश्य वि० दर्शाववा- उल्लेखवा अपचिति स्त्री० क्षय; क्षीणता; नुकसान; लायक (२) छळथी कहेवा लायक नाश (२) खर्च (३)वसूलात; बदलो; अपत न० मीचा वळी नासी जq ते प्रायश्चित्त (४) मान; आदर; पूजा अपध्यान न० खोटो विचार; अहित अपच्छाय वि० छाया विनानु(२) प्रकाश इच्छq ते(२)न चितववा योग्य चिंतन विनानु; झा (३) अपशुकनियाळ अपध्ये १५० खोटो विचार करवो; पडछायावाळं (४) पुं० देव (जेने अहित इच्छq पडछायो न होय) अपध्वस्त वि० निंदित (२) तजेलं (३) अपजात पुं० खराब संतान; माबाप चूर्ण करेलु करतां ऊतरता गुणोवाळ संतान अपध्वंस् १ आ० खसी जवं; चाल्या अपज्ञा ९ आ० [अपजानीते संताडवू; जवं (२) वढवं; ठपको आपवो छुपाव, (२) ना कहेवी अपध्वंस पुं० अधःपात; अधोगति For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy