SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपनय अपनय पुं० लई लेवं ते (२) दूर करवं ते (३) खंडन करवं ते (४) दुर्वर्तन; अनीति (५) हानि ; अपकार अपनयन न० लई लेवं ते (२) दूर कर, ते (३) देवामांथी मुक्त करवु - थर्बु ते (४) अन्याय अपनी १५० लई लेवं (२दूर करवं. ३) खेंचवू; खेंची काढवू (तेल, बाण इ०) (४) उतारवू (कपडां, घरेणां इ०) (५)बाकात राखq (६) दुर्वर्तन करवू अपनीत वि० लई लीधेलु; काढी नाखेलं (२) विरुद्धन; ऊलटु (३) चूकवी दीधेलं (४) दुर्वर्तनवाळ (५) न० दुर्वर्तन (६) छळ; कपट अपनुति स्त्री० दूर करवू ते ; खसेडवं ते अपनु ६५० दूर करवू; खसेडवू अपभाष १ आ० अपशब्द बोलवा; गाळ देवी; निंदा करवी अपभाषण न० अपशब्द; गाळ (२) निंदा अपभ्रष्ट वि० नीचे पडेलु (२) अपभ्रंश पामेलु अपभ्रंश् १ आ० दूर पडवू ; सरी पडवू -प्रेरक० खसेडवु; दूर करवू अपभ्रंश पुं० नीचे पडवू ते (२) विकृत थयेलो शब्द (३) संस्कृतने हिनाबे अपभ्रष्ट थयेली एक भाषा अपमर्द पुं० कूडो; कचरो अपमर्श पुं० स्पर्श करवो - घसावं ते अपमान पुं० अनादर; तिरस्कार अपमार्जन न० लूछी काढq ते; साफ करवू ते अपमृत्यु पुं० आकस्मिक मृत्यु ; कमोत अपयशस् न० अपयश; अपकीर्ति अपया २ प० जतुं रहे; नासी जq अपर वि० जेनाथी श्रेष्ठ बीजं कांई नथी तेवू;उत्तम (२)बीजं अन्य वधारानुं (३) बीजानु (पोतानुं नहि तेवू) (४) पछीन; पाछळy (काळस्थळमां) (५) पश्चिमनुं अपरिच्छद (६)निकृष्ट ; हलको जात, (७) पुं० हाथीनो पाछलो पग (८) शत्रु अपरक्त वि० रंग वगरन (२) लोही वगरनुं; निस्तेज (३) असंतुष्ट अपरत्र अ० बीजे ठेकाणे अपरम् अ० वळी; भविष्यमां; विशेषमां अपररात्र पं० रात्रीनो उत्तर भाग अपरस्पर वि० एक पछी बीजं होय तेवू; सतत जारी रहेतुं (२) अन्योन्य अपरंज् (कर्मणि०) [अपरज्यते विरक्त थर्बु (२) असंतुष्ट थर्बु अपरा स्त्री० पश्चिम दिशा अपराग पुं० असंतोष;वैर स्नेहनो अभाव अपराजित वि० नहि जितायेलं; अजेय अपराजिता स्त्री० दशेराने दिवसे जेनुं पूजन थाय छे ते - दुर्गादेवी (२) मादळियामां बंधाती एक वनस्पति (टुचका तरीके) तेवू अपराजेय वि० अजेय; न हरावी शकाय अपराद्ध वि० अपराधी (२) लक्ष केलं (बाण इ०) (३) उल्लंघन थq ते (वेळा इ० नु)(४,न० गुनो;अपराध दोष;ईजा अपराध ४, ५ ५० अपराध करको; दोष करवो अपराध पुं० दोष ; गुनो (२) पार अपराधिन् वि० गुनो करनालं; अपराधी अपराविद्या स्त्री० वेद-वेदांग (ब्रह्मविद्या सिवायनी विद्याओ) पहोर अपराल पुं० सांज; दिवसनो पाछलो अपरांत वि० पश्चिम सरहदे रहेतुं (२) पुं० पश्चिम सरहदे आवेलो देश अपरांतक पुं० सह्याद्रि पासेनी पश्चिम सरहदनो प्रदेश अथवा तेनो रहेवासी अपरिग्रह वि० घरबार के परिवार विनानुं (२) पुं० धननो परिग्रह - स्वीकार न करवो ते (३) निर्धनता अपरिच्छद वि० निर्धन ; गरीब (परिवार - वस्त्र वगेरे विनानु) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy