SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अन्वक अ० पाछळ पाछळ (२)पाछळथी अन्वक्षम् अ० तरत ज पछी अन्वय पुं० वंश; संतति (२) पाछळ पाछळ जq ते (३) संबंध (४) वाक्यमां शब्दोनो स्वाभाविक क्रम (व्या०) (५) कार्यकारण संबंध (६) पाछळ पाछळ जनार- अनुचर वर्ग (७) नित्य साहचर्य (न्या०) अन्वयज्ञ पुं० वंशावली जाणनार अन्वयागत वि० वंशपरंपरागत अन्वर्य वि० यथार्थ; अर्थने अनुसरतुं अन्वहम् अ० दररोज अन्वास् २ आ० पासे बेस; पासे रहे (२)-नी पछी बेसवं (३)सेवा करवी (४) धर्मक्रिया करवी अन्वि (अनु+इ) २ प० पाछळ पाछळ जवू; अनुसर, अन्वित. ('अन्वि'न भू० कृ०) वि० युक्त; सहित (२) मन वडे समजायेलु (३) उचित ; लायक अन्विष् (अनु+इष) ६ ५० [अन्विच्छति , ४ प० अन्विष्यति] शोध; शोध करवी; तपास करवी अन्वीश् १ आ० बारीकीथी जोवूतपासवं तपास अन्वीक्षण न०, अन्वीक्षा स्त्री० बारीक अन्वीत वि० जुओ 'अन्वित' अन्वेषक वि० निरीक्षक ; बारीक तपास करनारुं तपास अन्वेषण न०, अन्वेषणा स्त्री० बारीक अप स्त्री० पाणी (ब० व० मां ज विपराय छे) अप अ० दूर- अळगुं, खोटुं- खराब, (ऊलटापणुं-विरोध, निर्देश-उदाहरण, मजाक-मश्करी,बातल करवू,छुपावq, - ए अर्थमां वपराय छे अपकर्त वि० नुकसान करनाएं; विरोधी (२) पुं० शत्रु अपक्ष अपकर्मन् वि० खराब आचरणवाळू (२) न० ऋण चुकवq ते (३) अनुचित कार्य; खराब कृत्य अपयश अपकर्ष पुं० अवनति: हास(२)नामोशी; अपकर्षण वि० लई लेनाएं; खेंची जनारु (२) न० लई लेवू ते; दूर करवू ते (३) हलकुं पाडवू ते अपकार पुं० अपकृत्य; हानि द्रोह दुष्टता (२) अनिष्ट चिंतवq ते अपकारक, अपकारिन् वि० खोटुं करनालं; नुकसान करनारुं (२) कृतघ्नी अपकोति स्त्री० अपयश; बदनामी अपक ८ उ० खोटुं करवू;अपकार करवो (२)दूर करवु (३)ईजा करवी; नुकसान करवू अपकृत न० अपकार; हानि; नुकसान अपकृष् १ ५०, ६ उ० पार्छ खेंची लेवू; दूर खेंची जq (२) लई लेवू; लई जर्बु (३) खेंची काढवू; सत्त्व काढवू (४) ओछु करवू (५)हलकुं पाडवू; अपमान करवू (६) वाळवं; खेंचवू (धनुष्य) अपकृष्ट वि० खेंची लेवायेलु; दूर करायेलु (२) हलकुं; नीच (३)निषेध करायेलुं; रोकायेलं (४) पुं० कागडो अपक ६ प० [अपकिरति] वेरवु; विखेरवं; उछाळवू (२) ६ आ० [अपस्किरते पगथी खणq - खोतरवू (पशुआनंदमां) अपक्रम् १ प० [अपक्रामति दूर जq; नासी जq (२) समयनुं वीत, अपक्रम पुं० दूर जq - नासी जq ते (२) समयनुं वीतवं ते (३) मनो अभाव; खोटो क्रम अपक्रिया स्त्री० नुकसान; ईजा (२) दोष अपक्रोश पुं० निंदा; गाळ अपक्ष वि० पांख वगरनुं (२) पक्ष के मित्र वगरनु (३) एके पक्षनुं नहि तेवं (४) विरुद्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy