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________________ २६४ परायन परःसहस्त्र परःसहस्र वि० हजारथी वधु परा अ० प्रधानपणुं, मुख्यत्व, मोकळापणु, मुक्ति,प्रतिलोमपण, त्याग, अनुक्रमनो अभाव, निंदा, घणापणं, अपमान, घर्षण, गति, भंग, अनादर अने अनावृत्ति बतावे परा स्त्री० वाणीनां चार रूपोमांनुप्रथम पराक पुं० एक तप पराकृ ८ उ० अवगणवू ; उपेक्षा करवी पराक्रम् १ उ० पराक्रम दाखवq (२) पार्छ फरवू (३) हुमलो करवो । पराक्रम पुं० बहादुरी; शूरातन (२) प्रयास; साहस (३) हुमलो; आक्रमण पराक्रांत वि० बहादुर; शूरवीर (२) __ आक्रमण करायेलु (.३)पार्छ फेरवायेलं पराग पुं० फूलमांनी रज (२) बारीक रज परागत वि मृत्यु पामेल (२) व्याप्त; छवायेलु (३) फेलायेलु परागम् १ प० [परागच्छति ] पार्छ फरवू (२) व्यापवं; छावू पराङमुख वि० विमुख ; पीठ फेरवी होय तेवं ; प्रतिकूल (२) परवा वगरनुं पराच वि० सामे पार - बीजी बाजुए आवेलु (२) पराङ्मुख ; विमुख (३) प्रतिकूल (४) बहारनी बाजु वळेलं (५) पार्छ वाळेलु (६) अ० दूर (७) बहारनी तरफ पराचीन वि० ऊंधी दिशामां वळेलं (२) विमुख ; परवा विनानु (३) पछोथी बनेल (४) बहिर्मुख (५) सामी बाजुए आवेलु [-थी हारवं ते पराजय पुं० जीतवं ते ; हरावq ते (२) पराजि १ आ० पराजय पमाडवू; हराव; जीतवू (२) -थी हारी जवू (३) -ने ताबे थव पराजित वि० हारेलं; जितायेलु पराडीन न० पाछळनी बाजुए ऊडवू ते परात्पर वि० उत्तमोत्तम (२) पुं० परमपुरुष; परमात्मा पराधीन वि० बीजाने आधीन; परतंत्र परान्न न० बीजानु अन्न [जीवनाएं परान्नभोजिन् वि० पारकानुं अन्न खाईने परापत् १ प० पासे आव (२) पार्छ फरवं (३) पडी ज; खोवा, परापर वि० दूरर्नु अने नजीकचें (२) पहेल अने पछीन (३) वहेल अने मोडं (४) उपरतुं अने नीचे पराभव पुं० पराजय; हार (२) अनादर; तिरस्कार (३) अलोप थवू ते (४) विनाश [मां होय तेवं पराभावुक वि० नाश पामवानी तैयारीपराभू १५० हराव (२) अलोप थई __ जवु (३) ताबे थq पराभूत वि० हारेलं; पराजित (२) अनादर - अपमान पामेलु पराभूति स्त्री० पराभव । परामर्श पुं० पकड के खेंचवू ते (केश) (२) नमावq - खेंचवू ते (धनुष्य) (३) बळात्कार (४) डखल ; विघ्न (५) विचार; चिंतन (६) हळवेथी स्पर्श करवो ते परामर ६ प० स्पर्श करवो (२) धीमेथी घसवं - दबावq (३) हुमलो करवो (४) भ्रष्ट करवं (स्त्री के मंदिर) (५) विचार करवो; चितवधू (६) स्तुति करवी। परामृष्ट वि० पकडायेलं ; स्पर्शायेलु (२) बळात्कार करेल (३) विचारेल; चितवेल (४) संबद्ध (५) पीडित परायण वि० अत्यंत आसक्त (२) -ना आधारवाळं; -नुं आश्रित (३) रक्षक; त्राता (४) -नी साथे संबंधवाळं (५) -नी तरफ लई जतुं (६) न० मुख्य के उत्तम ध्येय, आश्रय के प्रयोजन (७) सार; तत्त्व (८) दृढ भक्ति (९) सर्व रोगोनी रामबाण दवा परायत्त वि० परतंत्र; पराधीन परायन वि० जुओ 'परायण' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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