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________________ परार्य २६५ परिकल्पना परार्थ वि० बोजा हेतु के अर्थवाळ (२) __हुमलो करवो (३) मारवं; ठोकवं बीजा माटेनं (३)पं० उत्तम प्रयोजन पराल पुं० बपोर पछीनो समय; के लाभ (४) बीजार्नु हित ('स्वार्थ' पाछलो पहोर थी ऊलटुं) (५) मोक्ष परांच् वि० जुओ ‘पराच्' परार्थम् , परार्थे अ० बीजाने माटे परि अ० (क्यारेक 'परी' पण) धातुओ पराध न० दश करोड अबज (एकडा अने धातुसाधित नामो आगळ : उपर सत्तर मीडां जेटली संख्या) आसपास, उपरांतमां - वधु, सामे - परार्ध्य वि० दूरनी के सामेनी बाजुनें विरोधमां, अत्यंत, -ए अर्थमा (२) (२) आगळनी अर्धी बाजुने लगतुं उपसर्ग तरीके : -नी तरफ, -नी (३) सर्वश्रेष्ठ (४) सौथी वधु सुंदर सामे, क्रमे -- एक पछी एक, भागे - के कीमती (५) दिव्य ; दैवी हिस्सामां, -मांथी, सिवाय - बाद परावर वि० दूरनं अने नजीकनं (२) करतां, वीत्या बाद, -ने परिणामे, पहेलांनुं अने पछी- (३) ऊंचं अने --थी वधु, -अनुसार, -नी प्रमाणे, नीचं (४) सौने व्यापतुं (५) न० --उपरांतमां-ए अर्थमां (३) धातुकार्य अने कारण (६) समग्र विश्व साधित नहि एवां नामो पूर्वे : घj, परावरज्ञ वि० भूत-भविष्य जाणनाएं अत्यंत, -ए अर्थमां (४) अव्ययरूप परावर्त पुं० पार्छ फरवू के वळवू ते समासोनी शरूआतमां : -सिवाय, (२) अदलोबदलो; विनिमय -ने बाद करतां, -थी वीटळायल के परावसथशायिन् वि० बीजाना घरमां घेरायेलं -ए अर्थमां (५) विशेषणसूई रहेनाएं रूप समासोने अंते : -थी थाकेल के परावृत् १ आ० पाछा फरवू के वळवू कंटाळेलु -एवो अर्थ बतावे परावृत्त वि० पार्छ फरेलु (२) चक्राकार परिकथा स्त्री० धार्मिक आख्यान फरेल (३) पाछु आपलं परिकर पुं० परिवार; अनुयायी वर्ग परावृत्ति स्त्री० पार्छ फरवं ते (२) (२) टोळं; समुदाय (३) प्रारंभ ; पलायन करवू ते (३) चक्राकारे फरवू शरूआत (४) केड बांधवी ते; सज्ज ते (४) अदलबदल करवू ते थर्बु ते (५) केडे बांधवानुं वस्त्र । परास् (परा + अस्) ४ प० तजवू परिकर्मन् पुं० सेवक; नोकर (२) न० (२) दूर करवु; काढी मूक (३) शरीरने शणगार, सुगंध वगेरेथी इन्कार संस्कार ते (३) पग रंगवा ते (४) परासिसिषु वि० हांकी काढवानी इच्छा- तैयारी (५) पूजा (६) मनने शुद्ध परासु वि० मृत; प्राणरहित करवानो उपाय [त्रास पमाडेलु परासुता स्त्री०, परासुत्व न० मृत्यु (२) परिकर्षित वि० खेंचेलं; ताणेलु (२) पराधीन जीवन परिकल् १० उ० आकलन करवू; परासेध पुं० केद [(३) इन्कारेलु समजवू (२) पकडq परास्त वि० फेंकी दीधेलं (२) पराजित परिकल्पन न०, परिकल्पना स्त्री० नक्की पराहत वि० पार्छ धकेली काढेलु (२) करQ - ठराव ते (२) गोठवणी मारेल; ठोकेलं करवी के रचq ते (३) पूरुं पाडवू पराहन् २ प० पार्छ धकेली काढ, (२) के मदद करवी ते [वाळ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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