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________________ परभृता २६३ पर शत परभृता स्त्री० (मादा) कोयल (कागडी- परवत् वि० परतंत्र; पराधीन ना माळामां उछेराती होवाथी) परवत्ता स्त्री० पराधीनता परम् अ० -थी पार; -थी बहार; परवश, परवश्य वि० पराधीन; परतंत्र पछीथी (२) ते पछी; त्यार बाद (३) परवाच्य न० पारकानुं छिद्र परंतु (४) नहि तो (५) अत्यंत (६) परवाद पुं० अफवा (२) वांधो; तकरार घणी खुशीथी (७) फक्त (८)बहु तो परश पुं० पारसमणि (जेना स्पर्शथी लोढुं परम वि० श्रेष्ठ; उत्तम (२) बहु वगेरे सोनुं बनी जाय) दूरनु; छेल्लु (३) मुख्य (४)पूरतुं (५) परशु पुं० फरशी ; कुहाडो न० उत्तम -ऊंचो- मुख्य भाग (६) परशुराम पुं० जमदग्निना पुत्र ; विष्णुनो (समासने छेडे) -- मुख्यत्वे बनेलं छठ्ठो अवतार ते (७) -मां लवलीन एवं ते परश्वष पुं० कुहाडो; परशु परमगति स्त्री० मोक्ष (२) मुख्य आधार परश्वस् अ॰आवती काल पछीने दिवसे (ईश्वर देव इ०) परस् अ० -थी पार; -थी दूर (२) परमप्रख्य वि० प्रसिद्ध ; प्रख्यात बीजी बाजुए होय तेम परमम् अ० स्वीकृति के कबूलात-एवो । परसात् अ० हाथमां (सोंपेलं) अर्थ बतावे (२) संपूर्णपणे सफळ परस्तात् अ० पार; सामी बाजुए; -थी परमसमुदय वि० अति कल्याणकारी दूर (२)हवे पछी; पाछळथी (३)बाजुए परमहंस पुं० उत्तम कोटीनो संन्यासी । परस्त्री स्त्री० बीजानी परणेली स्त्री परमाणु पुं० वधु विभाग न थई शके परस्पर वि० एकबीजानु (२)(ब०व०) एवो नानामां नानो भाग एकबीजा समान (३) सना०, वि० परमात्मन् पुं० परमात्मा; परब्रह्म एकबीजूं (एकवचनमां ज) परमापद स्त्री० मोटामां मोटी विपत्ति परस्परम् अ० एकबीजाने परमायुध न० चक्र; एक हथियार परस्व न० बीजानी मिलकत परमार्थ पुं० परमसत्य; परमतत्त्व; परहित वि० बीजानुं हित करनाएं के परमज्ञान (२) साचं के खलं होय ते ताकनारु (२) बीजाने लाभ करनारं (३) कोई पण उत्तम के अगत्यनी वस्तु (३) न० पारकानुं भलं परमार्थतः अ० खरेखर; चोकसपणे परंज पुं० घाणी (२) तलवार- फळं परमार्थदरिद्र वि० खरेख९ दरिद्र (३) न० इंद्रनुं खड्ग परमिक वि० उत्तम ; श्रेष्ठ परंतप वि० शत्रुओने पीडनारं परमेश्वर पुं० परमात्मा परंपर वि० एक पछी एक क्रममा आवतुं परमेष्ठ वि. उत्तम ; श्रेष्ठ (२) पुं० प्रपौत्र परमेष्ठिन् वि० टोचे ऊभेलु; श्रेष्ठ (२) परंपरम् अ० अनुक्रमे ; एक पछी एक पुं० विष्णु, शिव, ब्रह्मा, गरुड के परंपरा स्त्री० सतत प्रवाह (२)पंक्ति; अग्निनुं नाम (३) गुरु (४) अर्हत समुदाय (३) योग्य क्रम (४) वंश । परमेष्वास पुं० उत्तम बाणावळी परंपरित वि० परंपरामां होय तेवं; चाल पररमण पुं० परणेली स्त्रीनो यार । परंपरीण वि० वंशपरंपरागत (२) परलोक पुं० मृत्यु पछीनो (स्वर्ग वगेरे। परंपरागत बीजो)लोक परःशत वि० सोथी वधु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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