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________________ गध गोकर्ण गृप ४५० लोभ करवो; अत्यंत तृष्णा गृहीतिन् वि० शीखेलु; भणेलं राखवी गृहेज्ञानिन् वि० घरमां डाहयु; बिनगृध्नु वि० लोभी ; इच्छावा ; आतुर ___ अनुभवी; मूर्ख [राचरचीलु गृध्य न० लोभ ; तृष्णा गृहोपकरण, गृहोपस्कर न० घरगध्र वि० लोभी; विषयेच्छु; कामी (२) गृह्य ('गृह' उपरथी) वि० आकर्षवा पुं०, न० गीध योग्य;-थी प्रसन्न थतुं (२) घेर पाळेलं; ध्रपति, गृध्रराज पुं० जटायु घरमा राखलं (३) आधार राखतुं (४) गृष्टि स्त्री० एक वार वियायेली-जुवान -नी बहार रहेलु (५)-ना पक्षy (६) गाय (२) जुवान पशु-मादा (समासमां) न० घरमां करवानो विधि - गह न० घर (२)पत्नी (३) गृहस्थाश्रम गृह्य ('ग्रह,' उपरथी) वि० लेवा लायक; पकडवा लायक (२) जोवा लायक (३) गृह पुं० ब०व० निवासस्थान ; घर (२) पत्नी (३) गृहस्थाश्रम; घरखटलो कबूल राखवा लायक । ग९५० बोलवू; बोलावq (२) जाहेर गृहक न० वाटिका गृहकर्तृ पुं० घर बांधनार; सुतार करवू घोष करवो (३) वर्णन करवू (४) स्तुति करवी (५) ६५० गळी गृहगोधा स्त्री० घरोळी गृहकलह जवू; खाई जर्बु (६) काढी नाखवू काढवू गृहच्छिद्र न० घरनी गुप्त वात (२) गहदारु न० घरनो थांभलो स्त्री गेय वि० गावाने योग्य (२) न० गीत गेह न० घर; निवासस्थान गृहदीप्ति स्त्री०घरनी शोभारूप सद्गुणी गहिन वि० गृहस्थाश्रमी गृहपति पुं० गृहस्थ ; गृहस्थाश्रमी (२) गेहिनी स्त्री० गहिणी; भार्या घरनो मुख्य माणस (३) गामनो मुखी गेहेक्ष्वेडिन्, गेहेनदिन, गेहेशूर पुं० घरमां - आगेवान शूरो-बीकण माणस [ओशीकुं गृहमणि पुं० दीपक; दीवो गेंडुक, गेंदुक पुं० रमवानो दडो (२) गृहमेघ पुं० घरोनो समुदाय गै १५० गावू (२) वर्णन करवू(गीतमां) गृहमेधिन् पुं० गृहस्थ ; गृहस्थाश्रमी गरिक पुं०, न० गेरु गृहयंत्र न० ध्वजदंड गो पुं०, स्त्री० पशु; ढोर (२) गायर्नु गृहसार पुं० मिलकत जे कई होय ते (दूध, मांस, चामडुं इ०) गृहस्थ पुं० गृहस्थाश्रमी पुरुष (३) इंद्रनुं वज्र (४) प्रकाश, किरण गृहस्थाश्रम पुं० चार आश्रमो पैकी बीजो (५) बाण (६) आकाश (७) स्त्री० आश्रम (जेमा विद्याभ्यास पूरो करीने, गाय (८) पृथ्वी (९) वाणी; शब्द लग्न करी, गृहस्थनां कर्तव्य बजावे छे) (१०) सरस्वती; वाणीनी देवता (११) गृहिणी स्त्री० गृहस्थनी स्त्री; घर- दिशा (१२)पुं० बळद; सांढ (१३)इंद्रिय धणियाणी [-प्रतिष्ठा (१४)शरीरनो वाळ (१५) सूर्य गृहिणीपद न० गृहिणी तरीकेनी पदवी । गोकर्ण वि. गायना कानना आकारनु गृहिन् पुं० मृहस्थाश्रमी पुरुष (२) पुं० गायनो कान (३) साप गृहीत ('ग्रह 'न भू० कृ०) वि० लीधेलु; (४) खच्चर (५) एक जातनुं बाण पकडेलु (२) स्वीकारेलुं; कबूल करेलु (६) एक जातनो मृग (७) अंगूठाना (३) मेळवेलु (४) शीखेलु; समजेलं; टेरवाथी अनामिका सुधी, अंतर (८) जाणेलं (५) पहेरेलु एक तीर्थ (दक्षिण-) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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