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________________ गुप्ति १५८ गृह गुप्ति स्त्री० रक्षण ; बचाव (२)छुपाववं गुवंगना स्त्री० गुरुपत्नी ते (३) ढांकतुं ते; म्यानमां मूकवू ते (४) गुविणी, गुर्वी स्त्री० सगर्भा स्त्री बंधन; केद (५) भोयरुं (६)किल्लो गुलिका स्त्री० दडो; मणको (२) गुरु वि० भारे; वजनदार (२) मोटुं; गोळी (३.) मोती विशाळ (३) दीर्घ; लांबु (४) महत्त्वनुं गुल्फ पुं० चूंटी; टण (५) दुःसह; तीव्र (६) पूज्य (७) गुल्म पुं०, न० झाडी (२) किल्लो (३) पचवामां भारे (८) अभिमानी (९) सैन्यविभाग (४) बरोळ ; ते वधवानो श्रेष्ठ ; उत्तम (१०) सामे न थई शकाय रोग (५) छावणी (६) तंबू तेवू; प्रबळ (११) अमूल्य (१२) पुं० गुह, १ उ० संताडवू; ढांकवं पिता; पूर्वज; ससरो (१३) पूज्य के गुह पुं० कार्तिकेय वडील माणस (१४) शिक्षक; अध्यापक गुहा स्त्री० गुफा (२) खाडो (३) (१५) आचार्य; धार्मिक संस्कार अंतःकरण; बुद्धि (४) छुपावधूते आपनार (१६) स्वामी; उपरी (१७) गुहाशय वि० गुफामा रहेनाएं; गुफामां बृहस्पति (१८) द्रोणाचार्य सूनारु (२) हृदय के अंतःकरणमा गुरुक वि. थोडंक भारे रहेनाएं गुरुकुल न० गुरुनु घर; विद्यापीठ गुह्य वि० संताडवा योग्य ; गुप्त राखवा गुरुकृत वि० पूजेलं (२) घणुं महत्त्व योग्य (२) गूढ (३) न० गुप्त वात; आपेलु; मोटुं - उत्तम मानेलं रहस्य (४) एकांत स्थळ (५) पुं० दंभ; गुरुक्रम पुं० गुरु द्वारा चाल्यं आवेलं पाखंड (६) काचबो दिवजाति परंपरागत शिक्षण - उपदेश गुह्यक पुं० कुबेरना भंडारनो रक्षक; एक गुरुचर्या स्त्री० गुरुसेवा गुंज १ प० गुंजवं; गुंजारव करवो गुरुजन पुं० वडील के पूज्य पुरुष गुंज पुं० गुंजारव (२) गुच्छो गुरुतर वि० वधु अगत्य, (२) वधु गुंजन न० गुंजवू ते; गुंजारव पूज्य (३)वधु भारे(४)वधु मुश्केल गुंजा स्त्री० चणोठीनो छोड (२) चणोठी गुरुता स्त्री० वजन; भारेपणुं (२)मुश्केली गुंजित न० गुंजारव; गणगणाट (३) महत्ता (४) पूज्यता (५) अगत्य गुंठन न० ढांकवं ते; छुपावq ते (२) गुरुदक्षिणा स्त्री० अभ्यास पूरो कर्या चोपडवू - चोळवू ते पछी गुरुने आपवानी दक्षिणा गुंठित वि० घेरायेलं; ढंकायेखें गुरुलाघव न० ओछु-वत्तुं मल्य के अगत्य । गुंफ ६ प० परोववं, गूंथQ गुरुवतिता स्त्री० गुरु के वडील प्रत्येनू गुंफित ('गुंफ्नुं भू० कृ०) वि० गूंथेलं; आज्ञांकितपणुं परोवेलु गुरुवतिन् पुं० गुरुने घेर रहेतो विद्यार्थी गूढ ('गुह 'न भू० कृ०) वि० संताडेलु गुरुवृत्ति स्त्री० गुरु के वडील प्रत्ये ढांकेलं (२) गुप्त; छा- राखेलु (३) आज्ञांकितपणे वर्तवं ते खानगी (४) नजरे न पडे तेवू गुरुष्यथ वि० भारे व्यथायुक्त गूढचार, गूढचारिन् पुं० जासूस गुरुष्व (गुरु + स्व) न० गुरुनी मिलकत गूर्जर पुं० जुओ 'गुर्जर' गर्जर पुं० गुजरात देश के तेनो वतनी गर्द पुं० कूदको । गुर्वर्थ वि० अगत्य, (२) पुं० गुरुदक्षिणा गृद्ध ('गृध्' नुं भू० कृ०) आसक्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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