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________________ कालाजिन १३१ कांत कालाजिन न० काळा हरण, चामडु काषाय वि० लाल; भगवू (२) न० कालातिक्रम पुं०, कालातिक्रमण न०, रातुं के भगवू वस्त्र कालातिपात, कालातिरेक पुं० मोडु काष्ठ न० लाकडु (२) सोटी (३) बळतण करवू ते; विलंब काष्ठकुट,काष्ठकट पुं० लक्कडखोद पक्षी कालातीत वि० जेनो समय बीती गयो काष्ठप्रदान न० चिता तैयार करवी ते होय तेवू; जूनुं थई गयेलु काष्ठा स्त्री० दिशा (२) मर्यादा; हद कालात्यय पुं० विलंब;वेळा वीती जवी ते (३)पराकाष्ठा; अंतिम हद कालायस वि० लोखंडनुं बनेल (२) काष्ठिक पुं० कठियारो न० लोखंड समज कास् १ आ० प्रकाश, (२) उधरस खावी कालावबोध पुं० समय अने संजोगनी कास पुं० उधरस ; खांसी कालांतक पु० यम कासार पुं० तळाव; सरोवर कालांतर न० वचगाळो; समयनो गाळो काहल न० अव्यक्त अवाज (२)एक वाद्य (२) बीजो समय काहलम् अ० अत्यंत कालिका स्त्री० दुर्गा (२) काळं वादळ; कांक्ष १ आ० आकांक्षा- इच्छा राखवी काळां वादळोनो समुदाय कांक्षा स्त्री० आकांक्षा; इच्छा कांक्षित ('कांक्ष'न भू० कृ०) वि० कालिमन् पुं० काळाश इच्छित (२)न० इच्छा ; आकांक्षा कालिंदी स्त्री० यमुना नदी कांक्षिता स्त्री० इच्छा; आकांक्षा काली स्त्री० दुर्गा कांक्षिन् वि० आकांक्षा राखतुं कालुष्य न० मलिनता; गंदापणं कांचन वि० सोनार्नु; सोना- बनावेलु कालेय, कालेयक न० एक सुगंधी लाकडु; (२)न० सोनुं (३)धन; समृद्धि कालागरु कांचि स्त्री०, कांचिकलाप पुं०, कांची काल्पनिक वि० मात्र कल्पनामा रहेलं; स्त्री०, कांचीकलाप पुं० स्त्रीनो कल्पित (२) कृत्रिम कंदोरो; घूघरीवाळो कंदोरो काल्य वि. कालोचित (२) शुभ ; कांड पुं०, न० भाग; विभाग; प्रकरण अनुकूळ (३) न० परोढ ; परोढियु (२)बे पिराई वच्चेनो भाग; पेरी काव्य न० रसात्मक वाक्य के पदबंध (३) डाळी (४) तीर (५) ढगलो; (२) पद्य ; कविता (३) पुं० असुरोना जथो (६) अवसर; समय ; प्रसंग गुरु शुक्राचार्य कांडपट पुं० तंबूनी आसपासनी कनात काश् १ आ० प्रकाश; चळकवू (२) कांडपात पुं० बाण- ऊडवू -- पडवं ते देखावू (३) -ना जेवू देखावू (२)बाण जई शके तेटलं अंतर काश पुं० एक जातनुं घास (सादडी कांडपृष्ठ पुं० सैनिक; शस्त्रोपजीवी वगेरेमां वपरातुं) (२)न० तेनुं फूल (२)पोताना कुळ के वर्णने वफादार काशिन् वि० (समासने अंते)-नी समान न रहेनारो (गाळ) देखातुं - शोभतुं - चळकतुं कांडीर पुं० धनुर्धारी ('कांडपृष्ठ'नी पेठे काश्मीर, काश्मीरज न० केसर गाळ रूपे पण वपराय छे) काश्यपी स्त्री० पृथ्वी कांत पुं० इच्छित ; प्रिय (२) सुंदर; काष पुं० घसवं ते (२) जेनी साथे मनोहर (३) सुखद; अनुकूल (४) कशु घसवामां आवे ते पुं० प्रीतम (५) वर; पति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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