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________________ कांता कांता स्त्री प्रिया (२) सुंदर स्त्री कांतार पुं०,न० अरण्य ; मोटुं-निर्जन वन (२) दुर्गम रस्तो-खाडो इ० कांति स्त्री० शोभा; सौंदर्य ; मनोहरता (२) तेज; नूर; दीप्ति कांतिभृत् पुं० चंद्र कांतिमत् वि० सुंदर ; मनोहर (२) भव्य कांदविक पुं० कंदोई कांदिशीक वि. नासभाग करवा मांडेलं भयभीत कांसुं (३)घंट कांस्य वि० कांसानुं बनेलं (२) न० कांस्यकार पुं० कंसारो कांस्यताल पुं० झांझ; कांसीजोडां कांस्यदोहन वि० कांसानु पात्र भरीने दूध आपे तेवू किट्ट, किटक न० काट (२) शरीरमांथी झरतो के नीकळतो मेल, मलमूत्र इ० (३)तेलमां ठरतो कचरो (४) कीटुं। किण पुं० घसारो पडीने (हाथ वगेरेमां) जामती गांठ ; घानुं चार्छ कितव पुं० शठ; लुच्चो; कपटी किम् स० ना०, वि० कोण ? कयो?शं? (२)न० 'शो उपयोग'? 'शुप्रयोजन'? (ते ते नामनी तृतीया साथे; उदा० धनेन किम्) किम् अ० 'कु' ने बदले, 'खराब','हलकं', 'नीचुं' -ए अर्थमां (उदा० 'किंपुरुष') किमपि (किम्+अपि) अ० कईक अंशे; कंईक (२) (जथो-गुण - स्वभाव अंगे) निश्चितरूपे न कही शकाय तेम (३) घणुय; केटलंय किमर्थम् (किम्+अर्थम् )अ० शा माटे? किमंग अ० 'तो पछी ...नी तो वात ज शी करवी?' - एवो अर्थ बतावे किमिति (किम्+इति) अ० शा माटे? शा हेतुथी? [शके' ? किमिव (किम् + इव) अ० 'शं होई किमु, किमुत अ० शुंआ के ते? (२) किंचित् शा माटे; वळी (३) केटलं वधारे; केटलं ओछु। कियत अ० केटलु? केटलुं मोटुं ? केटले दूर? (२) शी विसात? (३) केटलुक किरण पुं० तेजनी रेखा; रश्मि । किरात पुं० पहाड़ी-जंगली लोकोनी एक जात (२) वेपारी; वाणियो किरीट पुं०, न० मुगट (२)पुं० वेपारी किरीटिन् वि० मुगटवाळू किल अ० खरेखर; नक्की (२) 'कहे छे के','सांभळवामां आव्यु छे के' -एवो अर्थ बतावे (३) कृत्रिमता, ढोंग, आशा, अणगमो, तिरस्कार, हेतु, कारण -एवो अर्थ दर्शावे किलकिल पुं०, किलकिला स्त्री० हर्ष के __ आनंदनो ध्वनि किल्विष न० पाप (२) अपराध ; दोष (३) विपत्ति ; दुःख (४) कपट (५)वेर किशोर पुं० नानो छोकरो(पंदरथी ओछी वयनो)(२) सूर्य (३) तरुण (४) वछेरो किशोरी स्त्री० नानी छोकरी; कन्या किसलय पुं०, न० कुंपळ ; पल्लव किंकणी स्त्री० घंटडी (२)घूघरी किंकथिका स्त्री० आनाकानी; संशय किंकर पुं० सेवक; नोकर किंकर्तव्यता स्त्री० मझवण ; 'शुं करवू' -एवो प्रश्न थाय तेवी परिस्थिति किकिणिका, किंकिणी, किंकिणीका स्त्री० जुओ 'किंकणी' किंकिरात पुं० एक जातनो पोपट (२) कोयल (३) मदन (४) अशोकवृक्ष (५) कदी न करमातुं मनातुं एक फूल (लाल के पीळू) [विनानुं किक्षण वि० आळसु; समयनी किंमत किंच अ० अने; वळी किंचन अ० कांईक अंशे; कंईक (२) कोई पण रीते नहि ; जरा पण नहि किंचित् अ० कंईक; थोडंक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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