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________________ कार्मुक १३० कालागर कार्मुक न० धनुष्य काल वि० काळु (२)पुं० काळो रंग (३) कार्य वि० करवा योग्य (२) न० करवानुं समय (४) योग्य समय (५) समयहोय ते ; कामकाज (३) कर्तव्य ; फरज विभाग (६) संहारकर्ता देव - रुद्र; (४) धंधो; प्रवृत्ति ; साहस ; जरूरी शंकर (७) मृत्यु (८) मृत्युसमय (९) काम (५) धर्मकार्य (६)जरूर; गरज यम (१०) ईश्वर (११) देव; नसीब (७)प्रयोजन; हेतु (८)फरियाद (९) (१२) आबोहवा; मोसम अनिवार्य परिणाम कालकर्मन् न० मृत्यु (२) विनाश कार्यकर्तृ पुं० -ना हितमा काम करनारं कालकंठ वि. काळी डोकवाळू (२) कार्यकारण न० कार्यनो खास हेतु- पुं० मोर (३) शंकर प्रयोजन (२) (द्वि० व०) कार्य अने कालकूट न० एक जात, तीव्र विष कारण ; हेतु अने प्रयोजन (२) समुद्रमंथनमांथी नीवळेलुं विष कार्यकाल पुं० कोई कार्य माटेनो उचित कालक्रम पुं० समय व्यतीत थर्बु ते काळ; तक (२) समय व्यतीत थवानो क्रम कार्यगौरव न० कोई पण कार्यनी के कालचक्र न० काळनुं सतत फरतुं रहेतुं प्रसंगनी अगत्य - महत्ता चक्र (२) जिदगीना वाराफेरा। कार्यचितक वि० विचारशील; डाहयु कालज्ञ वि० योग्य समयने जाणनाएं कार्यपदवी स्त्री० कार्यसरणी; कार्य (२) पुं० दैवज्ञ ; जोषी करवानी रीत के क्रम कालदंड पुं० यमराजनो दंड; मृत्यु ; मरण कार्यवशात् अ० हेतुसर; प्रयोजनथी कालधर्म, कालधर्मन् पुं० समयने योग्य कार्यवस्तु न० अभिप्राय; उद्देश एवं कर्तव्य (२) काळनो नियम (३) कार्यविपत्ति स्त्री०, कार्यव्यसन न० अमुक समये अमुक परिणामो नीपजवां असफळता; निष्फळता ते (४) मोत; यम कार्यहंत पुं० कार्यमां विघ्न करनार; कालधौत न० सोनू के रूप काम बगाडनार कालनियोग पुं०नियतिनो लेख -निर्णय कार्याकार्य न० करवा योग्य अने न कालपर्यय पुं० कालक्रम (२) कालाति करवा योग्य - सारं अने नरसुं काम क्रम; समयनुं वीती जवं ते (३) कार्यार्थ न० कार्य- निमित्त; कार्यनो हेतु कालनी विपरीतता कार्याथिन् वि० काम पार पाडवानी कालपाशिक पुं० फांसी देनारो इच्छा राखनारुं (२) फरियाद करनारूं। कालयाप पुं०, कालयापन न० कालक्षेप; कार्य न० कृशता; दुर्बळता (२)ओछा- __ढील - विलंब करवां ते पणुं (३)अल्पपणुं (उदा० अर्थकार्य') कालयोग पुं० नसीब कार्षापण पुं० एक सिक्को (२) एक वजन कालरात्रि (-त्री) स्त्री० घोर अंधारी काणं वि० कृष्णर्नु; विष्णु संबंधी (२) रात (२) सृष्टिना प्रलयनी रात कृष्ण-द्वैपायन व्यासमुं (दुर्गानुं स्वरूप)(३) दिवाळोनी रात कार्णायस वि० लोखंडन बनावेलं (२) कालविप्रकर्ष पुं० बहु लांबो काळ जवो ते न० लोखंड कालसमन्वित, कालसमायुक्त वि० मृत काष्णि पुं० कामदेव ( कृष्णना पुत्र कालहरण न०, कालहानि स्त्री० विलंब प्रद्युम्न तरीके) (२) शुकदेव कालागर न० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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