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________________ कामिनी १२९ कार्मण कामिनी स्त्री प्रेमी स्त्री(२) सुंदर स्त्री कारणकारितम् अ० –ने कारणे (३) कोई पण स्त्री कारणभूत वि० कारणरूप - सावनरूप कामुक वि० इच्छुक (२)विषयी ; कामी बनेल (३) पुं० यार (४) कामी पुरुष कारणशरीर न० स्थूल-सूक्ष्म शरीरना कामेप्सु वि० भोगनी इच्छावाळू मूळ कारणरूप देह (वेदांत०) काम्य वि० इच्छवा योग्य (२) ऐच्छिक; कारणा स्त्री० तीव्र वेदना (२) प्रेरणा खास हेतुथी करेलु ('नित्य'थी ऊलटु) कारणांतर न० विशेष कारण (२) (३) सुंदर; रमणीय निमित्त कारण काम्या स्त्री० इच्छा; कामना; धारणा कारंड, कारंडव पुं० एक जातनी बतक काय पुं०, न० शरीर (२) वृक्षतुं थड कारा स्त्री० केद (२) केदखानुं । (३) समूह [करीने आवेलु कारागार, कारागृह, कारावेश्मन् न० कायवत् वि० अवताररूपे - देह धारण केदखानु [क्रिया; कार्य कायस्थ पुं० ए नामनी ज्ञातिनो माणस कारि पुं० कारीगर; शिल्पी (२) स्त्री० (क्षत्रिय पुरुष अने शूद्र स्त्रीथी जन्मेल) कारिका स्त्री० व्याकरण, दर्शनशास्त्र कायिक वि० शरीरने लगतुं ; शरीरनुं इ० ना सिद्धांतोतुं श्लोकबद्ध विवरण कायिका स्त्री० व्याज कारित वि० करावेलु कायिका वृद्धि स्त्री० गीरो मकेल ढोर के मुद्दलना उपयोगथी व्याजरूपे मळतुं कारिन् वि० करना; बनावनाएं (समासने छेडे) (२) पुं० कारीगर जे कई ते कायिन् वि० मोटा शरीरवाळू कारु वि० शिल्पी; कारीगर कार वि० करनालं; रचनारुं (समासने कारुणिक वि० दयाळु छेडे) (२) पुं० वर्णने अंते 'ते वर्ण के कारुण्य न० करुणा; दया कार्कश्य न० कर्कशता; कठोरता (२) तेनो उच्चार' एवा अर्थमां (उदा० 'अकार') (३) रवानुकारी शब्दने अंते निर्दयता; क्रूरता 'ते रव' एवा अर्थमां (४) कार्य; कर्म कार्तस्वर न० सोनुं (५) बल; यत्न काातिक पुं० ज्योतिषी कारक वि० करनारूं; करावनारुं कार्तिक पुं० कारतक मास (समासने छेडे) (२) न० वाक्यमां कार्तिकी वि० कारतक मासरों नाम अने क्रियापद वच्चेनो अथवा कातिकेय पुं० शंकरना पुत्र - स्कंद नामनी साथे विभक्तिनो संबंध कात्यं न सघळापणुं; सकळपणुं धरावता शब्दो वच्चेनो संबंध (छठ्ठी कार्दम वि० कादववाळं सिवायनी बधी विभक्ति) कार्पटिक पुं० यात्राळु (२) संघ कारण न० कार्यनी उत्पत्ति के प्रवृत्तिनुं कार्पण्य न० गरीबाई; दीनता (२) मूळ - बीज (२) हेतु; उद्देश (३) दया; अनुकंपा (३) कृपणता साधन (४) उत्पन्न करनार; जनक कार्पास वि० कपास- बनावेलु; सुतराउ (५) मूळ तत्त्व (६) इंद्रिय (७) (२)पुं०, न० कपासबनावेलु वस्त्र शरीर (८) पूर्व वासना कार्मण वि० कर्मकुशळ (२) न० जादुकारणकारण न० आदि कारण; मूळ विद्या; मंत्र-औषधादिथी वशीकरण कारण (२) परमाणु वगेरे करवू ते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016092
Book TitleVinit Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherGujarat Vidyapith Ahmedabad
Publication Year1992
Total Pages724
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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