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________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश है। (स्था आदि क्रम से स्थापना करना। आठ प्रकार हैं-आमर्पोषधि, श्वेलौषधि, जल्लौषधि, अधिकताध्ययनपर्वापर्वानपादिरचनाश्रयप्रस्तारोपयोगिनी मलौषधि विडौषधि सौषधि आस्थाविप टष्टिविट। औपनिधिकीत्युच्यते। (अनु १११ हावृ पृ ३१) औषधर्द्धिरष्टविधा-असाध्यानामप्यामयानां सर्वेषां विनिवत्तिहेतरामर्शदवेलजल्लमलविसौषधिप्राप्ताऔपपातिक स्याविषदष्ट्यविषविकल्पात्। (तवा ३.३६.३) १. उत्कालिक श्रुत का एक प्रकार। प्रथम उपांग, यह वर्णक का आधारभूत सूत्र तथा अन्य मतावलम्बियों का परिचयसत्र (नन्दी ६६) २. पुनर्जन्म करने वाला। कण्डिकानुयोग अस्थि मे आया ओववाइए। (आ १.२) अनुयोग (दृष्टिवाद) का एक विभाग । कण्डिका (गण्डिका) ३. उपपात जन्म से उत्पन्न होने वाला देव और नारक। -समान वक्तव्यता के अर्थाधिकार का अनुसरण करने वाली औपपातिका देवनारकाः। (स्था ८.२ वृ प ३९५) वाक्यपद्धति; उसका अर्थ प्रकट करने वाली विधि, जैसेऔपम्य कुलकरगण्डिका, तीर्थंकरग्रण्डिका आदि। साधर्म्य और वैधर्म्य के द्वारा दो वस्तुओं की तुलना करना। इहैकवक्तव्यतार्थाधिकारानुगता वाक्यपद्धतयो गण्डिका उच्यन्ते तासामनयोगः, अर्थकथनविधि: गण्डिकानयोगः । ओवम्मे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-साहम्मोवणीए य वेहम्मो (समप्र १२७ वृ प १२२) वणीए य। (अनु ५३८) गंडियाणुओगे कुलगरगंडियाओ, तित्थयरगंडियाओ"आघऔपम्य सत्य विजंति। (नन्दी १२१) सत्य का एक प्रकार । समान धर्म के आधार पर उपमा द्वारा (द्र गण्डिकानुयोग) किसी को उपमित करना, जैसे-आंखें कमल के समान हैं। कतिसञ्चित दशममौपम्यसत्यमिति उपमैवौपम्यं तेन सत्यमौपम्यसत्यं यथा समुद्रवत्तडागं देवोऽयं सिंहस्त्वमिति, सर्वत्रैकार: प्रथमैक संख्यात रूप में व्यक्त होने वाली राशि। 'कती' त्यनेन संख्यावाचिना द्वयादयः संख्यावन्तोऽभिधीयन्ते वचनार्थे द्रष्टव्य इहेति। (स्था १०.८९ वृ प ४६४) ''सञ्चिता:-कत्युत्पत्तिसाधाद् बुद्ध्या राशीकृतास्ते औपशमिक भाव कतिसञ्चिताः। (स्था ३.७ वृ प ९९) उपशम से होने वाली आत्मा की अवस्था। (द्र अकतिसञ्चित) .."उपशमः"तेन निष्पन्नो भावः औपशमिकः। कथाप्रबन्ध सम्भोज (जैसिदी २.४५ वृ) सांभोजिक साधुओं के पारस्परिक व्यवहार का एक प्रकार । (द्र उपशम) साम्भोजिक साधुओं के साथ कथा का प्रबन्धन करना। यह औपशमिक सम्यक्त्व व्यवहार असाम्भोजिक साधुओं के साथ भी हो सकता है। दर्शनसप्तक अनन्तानुबंकधिचतुष्क और दर्शनमोहत्रिक के कथा-वादादिका पञ्चधा तस्याः प्रबन्धनं-प्रबन्धेन करणं उपशम से प्राप्त होने वाला सम्यक्त्व। कथाप्रबन्धनं, तत्र सम्भोगासम्भोगौ भवतः। सम्यक्त्वं "अनन्तानुबन्धिचतुष्कस्य दर्शनमोहनीयत्रिकस्य (सम १२.२ वृ प २३) चोपशमे औपशमिकम्। (जैसिदी ५.४ वृ) कन्दर्प औषधि ऋद्धि अनर्थदण्ड विरमण का एक अतिचार । कामवर्धक वाक्प्रयोग, हास्य आदि। मोह को उद्दीप्त करने वाली हास्ययुक्त क्रीड़ा तप से प्राप्त वह लब्धि, जिसके प्रभाव से तपस्वी के स्पर्श करना। आदि में समस्त औषधियों के गण प्राप्त हो जाते हैं। इसके कन्दर्पः-कामस्तद्हेतुविशिष्टो कन्दर्प उच्यते, रागोद्रेकात् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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