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________________ ८० हैं, परन्तु जब तक वह पूर्ण नहीं होता, तब तक वैक्रिय काययोग के साथ औदारिक मिश्र काययोग होता है। ३. विशिष्टशक्तिसम्पन्न योगी आहारक शरीर का निर्माण करता है, जब तक आहारक शरीर पूरा नहीं बन जाता, तब तक आहारक काययोग के साथ औदारिक- मिश्र काययोग होता है। ४. केवली समुद्घात के दूसरे, छठे और सातवें समय में कार्मण के साथ औदारिक-मिश्र काययोग होता है । औदारिकमुत्पत्तिकालेऽसम्पूर्ण सत् मिश्रं कार्म्मणेनेति औदारिकमिश्रं तदेवौदारिकमिश्रकं तल्लक्षणं शरीरमौदारिकमिश्रकशरीरं तदेव कायस्तस्य यः प्रयोगः औदारिकमिश्रकशरीरस्य वा यः कायप्रयोगः स औदारिकमिश्रकशरीरकायप्रयोगः । यदा पुनरौदारिकशरीरी वैक्रियलब्धिसम्पन्नो मनुष्यः पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकः पर्याप्तबादरवायुकायिको वा वैक्रियं करोति तदा औदारिककाययोग एव वर्तमानः प्रदेशान् विक्षिप्य वैक्रियशरीरयोग्यान् पुद्गलानुपादाय यावद् वैक्रियशरीरपर्याप्त्या न पर्याप्तिं गच्छति तावद्वैक्रियेणौदारिकशरीरस्य मिश्रता । --एवमाहारकेणाप्यौदारिकशरीरस्य मिश्रता । (भग ८.५८ वृ) द्वितीयषष्ठसप्तमसमयेषु पुनः प्रदेशानां प्रक्षेपसंहारयोरौदारिके तस्माच्च बहिः कार्मणे वीर्यपरिस्पन्दादौदारिककार्मणमिश्रः । (औपवृ पृ २१० ) औदारिकमिश्रशरीरकाययोग (औप १७६) (द्र औदारिकमि श्रशरीरकायप्रयोग) औदारिकवर्गणा वह पुद्गल - समूह, जो औदारिक शरीर के निर्माण के योग्य है । तथाविधविशिष्टपरिणामपरिणतानन्तप्रदेशिकस्कन्धानामेकोत्तरवृद्धयौदारिकशरीरग्रहणप्रायोग्या अनन्ता वर्गणा भवन्ति । औदारिकशरीरनिर्वर्तनयोग्या इत्यर्थः । (विभा ६३५ वृ) औदारिक शरीर स्थूल पुद्गलों से निष्पन्न रस आदि धातुमय शरीर । यह Jain Education International जैन पारिभाषिक शब्दकोश मनुष्य और तिर्यञ्चों के ही होता है । स्थूलपुद्गलनिष्पन्नं रसादिधातुमयम् औदारिकम्, मनुष्यतिरश्चाम् ॥ (जैसिदी ७.२५ वृ) औदारिकशरीरबन्धननाम नामकर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से गृहीत और गृह्यमाण औदारिक शरीर के पुद्गलों का परस्पर तथा तैजस और कार्मण के पुद्गलों के साथ सम्बन्ध स्थापित होता है। यदुदयवशाद् औदारिकपुद्गलानां गृहीतानां गृह्यमाणानां च परस्परं तैजसादिपुद्गलैश्च सह सम्बन्ध उपजायते तदौदारिकबन्धनम् । (प्रज्ञा २३.४३ वृ प ४७० ) औद्देशिक उद्गम दोष का एक प्रकार। निर्ग्रन्थ को दान देने के उद्देश्य से आरंभ समारंभ कर बनाया गया आहार आदि । उद्दिस्स कज्जइ तं उद्देसियं, साधुनिमित्तं आरंभो त्ति वृत्तं भवति । (द ३.२ जिचू पृ १११) औपक्रमिकी वेदना वेदनीय कर्म के विपाक तथा रोग आदि निमित्त से होने वाली वेदना । स्वयमेव समीपे भवनमुदीरणाकरणेन वा समीपानयनं तेन निर्वृत्ता औपक्रमिकी | (प्रज्ञा ३५.१२ वृ प ५५७) (द्र आभ्युपगमिकी वेदना) औपग्रहिक उपकरण मुनि का वह उपकरण, जो विशेष स्थिति में उपयोग में लिया जाता है। 1 कारणे आपन्ने संयमयात्रार्थं यो गृह्यते न पुनर्नित्यमेव स औपग्रहिकः । (प्रसावृ प ११८) औपचारिक अवग्रह (द्र व्यावहारिक अर्थावग्रह ) औपचारिक विनय (विभामवृ १ पृ १६८) For Private & Personal Use Only (प्रसावृ प ६८ ) (द्र लोकोपचार विनय ) औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी द्रव्यानुपूर्वी का एक प्रकार । विवक्षित अर्थ की पूर्वानुपूर्वी www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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