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________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश ग्रन्थधारणं शिष्याध्यापनं च कुर्विति अनुज्ञा। (अनु ३ हावृ पृ २) (द्र उद्देश) यतोऽनिह्नवेनैव पाठादि सूत्रादेर्विधेयं न पुनर्मानादिवशतः आत्मनो लाघवाद्याशङ्कया श्रुतगुरूणां श्रुतस्य वाऽपलापेनेति। (प्रसा २६७ वृ प ६४) अनीकाधिपति देव-सेना का अधिपति। अनीकाधिपतयो दण्डनायक स्थानीयाः दण्डनायको विक्षेपाधिपतिः सेनापतिः। (तभा ४.४७) अनुकम्पा सम्यक्त्व का एक लक्षण। अनुग्रह की बुद्धि से चित्त की आर्द्रता होने पर पर-पीड़ा को अपनी पीड़ा मानने से होने वाला अनुकम्पन। अनुग्रहबुद्धयाऽऽर्टीकृतचेतसः परपीडामात्मसंस्थामिव कुर्वतोऽनुकम्पनमनुकम्पा। (तभा ६.१३ वृ) अनुकम्पा दान वह दान, जो करुणापूर्वक दीन, अनाथ को दिया जाता है। कृपया दानं दीनानाथविषयमनुकम्पादानम्। (स्था १०.९७ वृ प ४७०) अनुत्कर्ष जाति आदि मदस्थानों के आधार पर जो अहंकार नहीं करता। अणक्कसो णाम न जात्यादिभिर्मदस्थानैरुत्कर्षं गच्छति। (सूत्र १.१.७७ चू पृ ४५) अनुत्तर देव वैमानिक देवों का एक प्रकार। अनुत्तर विमानवासी देव, कल्पातीत देव, जो स्थिति, प्रभाव, द्युति में अन्य देवों की अपेक्षा श्रेष्ठ होते हैं । इनके पांच प्रकार हैं-विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वाथसिद्धक। .......विजया वेजयंता य जयंता अपराजिया॥ सव्वट्ठसिद्धगा चेव पंचहाणुत्तरा सुरा। इइ वेमाणिया देवा...... ॥ न विद्यन्ते उत्तरा-प्रधाना स्थितिप्रभावसुखद्युतिलेश्यादिभिरेभ्योऽन्ये देवा इत्यनुत्तराः। (उ ३६.२१५,२१६ शावृ प ७०२) अनुत्तर विमान वैमानिक देवों के वे पांच विमान (आवास-स्थल)-विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और सर्वार्थसिद्ध, जो स्वर्गों में सबसे ऊर्ध्ववर्ती होते हैं। (देखें चित्र पृ ३४६) अनुत्तराः पञ्चेत्यादि। विमानविशेषाः पञ्च सर्वोपर्यनुत्तराः अविद्यमानमुत्तरमन्यद् विमानादि येषां तेऽनुत्तराः देवनामान एव ते विमानविशेषाः। (तभा ४.२० वृ) अनुत्तरोपपातिकदशा द्वादशांग श्रुत का नौवां अंग। इसमें अनुत्तर विमान में उपपन्न दस साधुओं के जीवन-चरित्र का वर्णन है। अणुत्तरोववाइयदसासु णं अणुत्तरोववाइयाणं."आघविजंति। (समप्र ९७) अनुक्त अवग्रहमति व्यावहारिक अवग्रह का एक प्रकार। शब्दोच्चारण के बिना ही विषय का अवग्रहण करना, जैसे-वीणा का स्पर्श करते हुए व्यक्ति को देखकर बता देना कि आप इस राग का वादन करेंगे। स्वरसंचरणात् प्राक् तन्त्रीद्रव्यातोद्यामर्शनेनैव अवादितम् अनुक्तमेव शब्दमभिप्रायेणावगृह्य आचष्टे -'भवानिमंशब्दं वादयिष्यति' इति। (तवा १.१६.१६) अनुगम व्याख्या (अनुयोग) का तीसरा द्वार । सूत्र का अनुगमन करते हुए वस्तु-द्रव्य की अस्तित्व, नास्तित्व, द्रव्यमान, क्षेत्र, स्पर्शना, काल आदि अनेक पहलुओं से व्याख्या करना। अनुगमनमनुगमः अनुगम्यतेऽनेनास्मिन्नस्मादिति वाऽनुगमः सूत्रस्यानुकूल: परिच्छेदः। (अनु ७५ हावृ पृ २७) अनुज्ञा प्राचीन अध्ययनपद्धति का तृतीय चरण। ग्रन्थधारण और अध्यापन की गुरु से आज्ञा प्राप्त करना। अनुत्तरोपपातिकदशाधर वह मुनि, जो अनुत्तरोपपातिक के सूत्र-पाठ और अर्थ का विशेषज्ञ होता है। अप्पेगडया अणत्तरोववाडयदसाधरा। (औप ४५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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