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________________ १८ जैन पारिभाषिक शब्दकोश न सन्ति इन्द्रियाणि येषां तेऽनिन्द्रियाः। के ते? अशरीराः अनिवृत्तियुक्तो बादरकषायः अनिवृत्तिबादरः । सिद्धाः। (धव पु १ पृ २४८) (जैसिदी ७.११) अनिवृत्तिबादरः स च कषायाष्टकक्षपणारम्भान्नपुंसकवेदोअनिमेषप्रेक्षा पशमनारम्भाच्चारभ्य बादरलोभखण्डक्षपणोपशमने यावद आंखों को तिर्यक् भित्ति, नासग्र आदि किसी एक बिन्दु पर भवति। (सम १४.५ वृ प २६) स्थापित कर उसे अनिमेष दृष्टि से देखना। इससे निर्विकल्प समाधि सिद्ध होती है। अनिश्चित अवग्रहमति अद पोरिसिं तिरियं भित्तिं, चक्खुमासज्ज अंतसो झाड़। अन्तर्लक्ष्यात्मकेन अनिमेषप्रेक्षाध्यानेन निर्विकल्पसमाधिः (द्र संदिग्ध अवग्रहमति) सिद्धयति। (आ ९.१.५ भा) अनिश्रित अवग्रहमति अनिर्वृतमूलक व्यावहारिक अवग्रह का एक प्रकार। १. किसी पूर्व गृहीत हेतु के बिना विषय का ग्रहण करना, अनाचार का एक प्रकार । सचित्त मूला लेना व भोगना, जो मुनि के लिए अनाचरणीय है। जैसे-फूल के स्निग्ध, मृदु आदि स्पर्श का पहली बार अनुभव करना। अनिर्वृतम्-अपरिणतमनाचरितं....' मूलं च' सट्टामूलादि, सचित्तमनाचरितम्। २. जो न पुस्तकों में लिखा गया है और जो न कहा गया है. (द ३.७ हावृ प ११८) उसका अवग्रहण करना। अनिर्हारि निश्रितो लिङ्गप्रतिमोऽभिधीयते, यथा यूथिकाकुसुमानाउपाश्रय से बाहर गिरिकन्दरा आदि एकान्त स्थानों में किया मत्यन्तशीतमृदुस्निग्धादिरूपः प्राक् स्पर्शोऽनुभूतस्तेनानुजाने वाला अनशन। मानेन लिङ्गेन तं विषयं न यदा परिच्छिन्दत् तज्ज्ञानं प्रवर्तते अनिर्झरिमं तु योऽटव्यां म्रियते इति। (भग २.४९ वृ) तदा अनिश्रितं अलिङ्गमवगृह्णातीत्युच्यते। (द्र निर्हारि) (तभा १.१६ वृ) ...."अणिस्सितं जन्न पोत्थए लिहियं। अनिवृत्तिकरण अणभासियं च गेण्हति॥ (व्यभा ४१०८) सम्यक्त्व-प्राप्ति की प्रक्रिया का एक अङ्ग। वह अध्यवसाय, जो सम्यक्दर्शन की प्राप्ति तक विद्यमान रहता है। अनिश्रित उपधान निवर्तनशीलं निवर्ति, ननिवर्ति-अनिवर्ति-आसम्यग्दर्शन- योगसंग्रह का एक प्रकार। दूसरे की सहायता लिए बिना लाभाद्न निवर्तते। (विभा १२०२ वृ पृ४५८) तप:कर्म करना। अनिश्रितंच-तदन्यनिरपेक्षमुपधानंच-तपोऽनिश्रितोपधानं अनिवृत्तिबादर जीवस्थान परसाहाय्यानपेक्षं तपो विधेयम्। (सम ३२.१.१ ७ प ५५) जीवस्थान/गुणस्थान का नौवां प्रकार। अनिसृष्ट १. वह जीवस्थान, जिसमें अनिवृत्ति-समसमयवर्ती जीवों उद्गम दोष का एक प्रकार। किसी वस्तु के एक से अधिक की परिणामविशुद्धि सदृश ही होती है। मालिक होने पर सबकी अनुमति के बिना वह वस्तु लेना। २. जो अनिवृत्ति और बादर-स्थूल कषाय वाला है, उसकी यद गोष्ठीभक्तादि सर्वैरदत्तमननुमतं वा एकः कश्चित् आत्मविशुद्धि। साधुभ्यो ददाति तदनिसृष्टम्। (योशा १.३८ वृ पृ १३४) अनिवृत्तिः-समसमयवर्तिजीवानां परिणामविशुद्धः सद्रशता। (जैसिदी ७.११ वृ) अनिह्नवन अनिवृत्तिबादरजीवस्थाने भिन्नसमयवर्त्तिजीवानां परिणाम- ज्ञानाचार का एक प्रकार । अपने वाचनाचार्य के नाम और श्रुत -विशद्धिर्विसदशी भवति, किन्तु समसमयवर्तिजीवानां का अपलाप न करना। सदृश्येव। (पंखं १, पृ १८४) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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