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________________ १२ तत्थ णं एगमेगे वालग्गे असंखेज्जाई खंडाई कज्जइ, ते णं वालग्गे दिट्ठीओगाहणाओ असंखेज्जइभागमेत्ता सुहुमस्स पणगजीवस्स सरीरोगाहणाओ असंखेज्जगुणा । ते णं वालग्गे नो अग्गी डहेज्जा.... तओ णं वाससए - वाससए गते एगमेगं वालग्गं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले खीणे नीरए निल्लेवे निट्ठिए भवइ । से तं सुहुमे अद्धापलिओवमे । ( अनु ४२७, ४२९, ४३१) अध्वा प्रत्याख्यान प्रत्याख्यान का एक प्रकार । प्रहर आदि के कालमान के आधार पर किया जाने वाला प्रत्याख्यान । अद्धायाः - कालस्य पौरुष्यादिकालमानमाश्रित्य । (स्था १०.१०१ वृ प ४७३ ) अध्वायु कायस्थति, वह आयु जो पारम्परिक है, जिसके आधार पर एक 'जीव एक ही जाति में अनेक बार जन्म लेता रहता है। (स्था २.२६२ ) (द्र कायस्थिति) अध्वा सागरोपम अध्वा सागरोपम के दो प्रकार हैं- व्यावहारिक और सूक्ष्म । दस कोटाकोटि व्यावहारिक अध्वा पल्योपम का एक व्यावहारिक अध्वा सागरोपम होता है। इसका कोई प्रयोजन नहीं है, केवल प्ररूपणा के लिए प्ररूपणा की जाती है। दस कोटाकोटि सूक्ष्म अध्वा पल्योपम का एक सूक्ष्म अध्वा सागरोपम होता है। एएसिं पल्लाणं, कोडाकोडी हवेज्ज दसगुणिया । तं वावहारियस्स अद्धासागरोवमस्स एगस्स भवे परीमाणं ॥ एएहिं वावहारियअद्धापलिओवम-सागरोवमेहिं नत्थि किंचिप्पओयणं, केवलं पण्णवणट्टं पण्णविज्जति । ....... एएसिं पल्ला, कोडाकोडी भवेज्ज दसगुणिया । तं सुहुमस्स अद्धासागरोवमस्स एगस्स भवे परीमाणं ॥ ( अनु ४२९, ४३०, ४३१ ) अनक्षरश्रुत श्रुतज्ञान का एक भेद | अभिप्रायपूर्वक किए गए उच्छ्वास Jain Education International निःश्वास आदि से होने वाला ज्ञान । ऊससियं नीससियं, निच्छूढं खासियं च छीयं च । निस्सिंघियमणुसारं, अणक्खरं छेलियाईयं ॥ जैन पारिभाषिक शब्दकोश अनगार वह साधु, जिसके कोई अगार-घर नहीं है, जो गुप्तियों से गुप्त, सभी समितियों से समित, संयत और यतना करने वाला होता है। 1 अगारं गृहं तं जस्स नत्थि सो अणगारो । (नन्दी ६० ) गुत्ता गुत्तहिं सव्वाहिं, समिया समितीहिं संजया । जयमाणगा सुविहिता, एरिसगा होंति अणगारा ॥ (दअचू पृ ३७) अनगारधर्म पांच महाव्रत रूप मुनिधर्म । अणगारधम्मो ताव अणगारियं पव्वइयस्स सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं मुसावाय अदत्तादाण मेहुणपरिग्गह- राई भोयणाओ वेरमणं । (औप ७६) अनङ्गप्रविष्टश्रुत श्रुतज्ञान का एक भेद । (द्र अङ्गप्रविष्टश्रुत, अङ्गबाह्य) (आवनि १०५) अङ्ग स्वदारसंतोष व्रत का एक अतिचार अप्राकृतिक मैथुन, स्वाभाविक कामाङ्गों के अतिरिक्त शरीर के अन्य अङ्गों में रति का प्रयोग करना । हस्तकर्मादीच्छा | (तभा ७.२३ वृ) अङ्ग प्रजननं योनिश्च ततोऽन्यत्र क्रीडा अनङ्गक्रीडा । अनेकविधप्रजननविकारेण जघनादन्यत्र चाङ्गे रतिरित्यर्थः । For Private & Personal Use Only ( तवा ७.२८.३१) अनंगानि - मैथुनकर्मापेक्षया कुचकक्षोरुवदनादीनि तेषु क्रीडनमनंगक्रीडा । (उपा १.३५ वृ पृ १३ ) (नन्दी ५५) अनध्यवसाय अयथार्थ ज्ञान का एक प्रकार । इन्द्रिय-समूह के साथ विषय का सम्पर्क होने पर ध्यान न देना, 'कुछ है' मात्र इतना ज्ञान होना । www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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