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________________ २६४ प्रमाणेन विग्रहेण भवान्तरोत्पत्तिस्थानं गच्छतो जीवस्य । (प्रज्ञावृ प ४७३) ३. वह गति, जो विग्रह (शरीर) - निर्माण के लिए होती है । ४. वह गति, जिसमें नोकर्मपुद्गलों का ग्रहण नहीं होता । विग्रहो देहस्तदर्था गतिर्विग्रहगतिः ।'''''विरुद्धो ग्रहो विग्रहो व्याघातः, नोकर्मपुद्गलादाननिरोध इत्यर्थः । (तवा २.२५) विचय ध्यान ध्यान की वह अवस्था, जिसमें वस्तुसत्य का पर्यालोचना, अन्वेषणा, विवेचना, विचारणा और विचिति की जाती है। आज्ञादीनां विचयः - पर्यालोचनम् । विचयः - अन्वेषणम् । (तभा ९.३७ वृ) ( तवा ९.३६.१ ) विचितिर्विवेको विचारणा विचयः । विचयो विपश्यना प्रेक्षा इत्यनर्थान्तरम्। (जैसिदी ६.४३ वृ) विचारभूमि वह स्थान, जहां उत्सर्ग किया जाता है। विचारभूमिः पुरीषोत्सर्गभूमिः । (द्र उत्सर्ग समिति) (व्यभा १७६७ वृ. प ८ ) विचिकित्सा सम्यक्त्व का एक अतिचार । लक्ष्यपूर्ति के साधनों के प्रति संशयशीलता । विचिकित्सा - साधनेषु संशयशीलता। (जैसिदी ५.१० वृ) विचित्र तप उपवास, बेला, तेला आदि तप । 'विचित्रं तु' इति विचित्रमेव चतुर्थषष्ठाष्टमादिरूपं तपः । (उ ३६.२५२ शावृ प ७०६ ) विजय १. महाविदेह क्षेत्र के बत्तीस विभाग हैं। प्रत्येक विभाग को विजय कहा जाता है। विदेहा मन्दरदेवकुरूत्तरकुरुभिर्विभक्ता क्षेत्रान्तरवद् भवन्ति । पूर्वे चापरे च । पूर्वेषु षोडश चक्रवर्त्तिविजयाः नदीपर्वतविभक्ताः परस्परागमाः । अपरेप्येवंलक्षणाः षोडशैव । (तभा ३.११) २. अनुत्तरविमानवासी देवों का प्रथम विमान, जो सर्वार्थसिद्ध विमान की एक दिशा में अवस्थित है। (द्र अपराजित) Jain Education International जैन पारिभाषिक शब्दकोश विज्ञ जीव जिन नामों से वाच्य होता है, उनमें से एक। जीव तिक्त, कटु, कसैले, अम्ल और मधुर रसों को जानता है, इसलिए वह विज्ञ है । जम्हा तित्तकडुकसायंबिलमहुरे रसे जाणइ तम्हा विष्णु त्ति । (भग २.१५ ) विज्ञान अवाय की पांचवीं अवस्था, जिसमें अवधारित अर्थ की विशेष प्रेक्षा और अवधारणा होती है। तम्मि चेवावधारितमत्थे विसेसे पेक्खतो अवधारयतो य विण्णाणे ति भण्णति । (नंदी ४७ चू पृ ३६) विदारणक्रिया क्रिया का एक प्रकार । आलस्य से प्रशस्त क्रियाओं को न करना और पर के पाप आदि का प्रकाशन करना । आलस्याद् वा प्रशस्तक्रियाणामकरणं पराचरितसावद्यादिप्रकाशनं विदारणक्रिया । (तवा ६.५.१० ) विदेह (तसू ३.१० ) (द्र महाविदेह, विजय ) विद्या वह विद्या, जिसकी अधिष्ठायिका देवी होती है और जो जप, होम आदि के द्वारा साधी जाती है। स्त्रीदेवताधिष्ठिता जपहोमसाध्या विद्या । (प्रसा ५६७ वृ प १४८ ) विद्याचरणविनिश्चय उत्कालिक श्रुत का एक प्रकार, जिसमें विद्या और चारित्र का निरूपण किया गया है। विज्जत्ति - नाणं, चरणं-चारित्तं, विविधो विसिट्ठी वा णिच्छयो सब्भावो स्वरूपमित्यर्थः, फलं वा निच्छयो, तं जत्थऽज्झयणे वणिज्जति तमज्झयणं विज्जाचरणविणिच्छयो । (नंदी ७७ चू पृ ५८) For Private & Personal Use Only विद्याचारण १. विद्या - पूर्वगत श्रुत की आराधना से प्राप्त आकाशगमन की लब्धि से सम्पन्न मुनि । www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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