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________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश लिए अनाचीर्ण है। अञ्जनं रसाञ्जनादिना। (द ३.९ हावृ प ११८) 'अण्णायय'त्ति तपसोऽज्ञातता कार्या। (सम ३२.१.२ वृ प ५५) अज्ञातपिण्ड (सूत्र १.७.२७) (द्र अज्ञातउञ्छ) अञ्जना अधोलोक (नरक) की चतुर्थ पृथ्वी का नाम। एतासि णं सत्तण्डं पुढवीणं सत्त णामप्पेज्जा पण्णत्ता, तं जहा-धम्मा, वंसा, सेला, अंजणा, रिट्ठा, मघा, माघवती। (स्था ७.२३) अज्ञान १. ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से होने वाला ज्ञान का अभाव। ज्ञानाभावरूपम् औदयिकमज्ञानम्। (जैसिदी २.३२) २. ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से होने वाला मिथ्यात्वी का ज्ञान। मिथ्यादृष्टानमपि मिथ्यादर्शनोदयपरिग्रहादज्ञानं बम्भण्यते। (विभा ५२० वृपृ २३८) अज्ञान परीषह परीषह का एक प्रकार। ज्ञान का विकास तथा तत्त्व का साक्षात्कार न होने के कारण होने वाली निराशा, जो मुनि के द्वारा सहनीय है। निरहगम्मि विरओ, मेहुणाओ सुसंवुडो। जो सक्खं नाभिजाणामि, धम्मं कल्लाण पावगं ।। तवोवहाणमादाय, पडिमं पडिवज्जओ। एवं पि विहरओ मे, छउमं न नियट्टई। (उ २.४२,४३) अञ्जलिप्रग्रहसंभोज सांभोजिक साधुओं के पारस्परिक व्यवहार का एक प्रकार। सांभोजिक अथवा अन्य सांभोजिक साधुओं को वन्दना करना। सम्भोगिकानामन्यसम्भोगिकानां वा संविग्नानां वन्दनकंप्रणाममञ्जलिप्रग्रह, नमः क्षमाश्रमणेभ्यः। (सम १२.२ वृ प २२) अणुव्रत गृहस्थ धर्म के पांच व्रत, जैसे-स्थूल प्राणातिपातविरमण, स्थूल मृषावादविरमण, स्थूल अदत्तादानविरमण, स्वदारसंतोष और इच्छापरिमाण। पंच अणुव्वयाई, तं जहा-थूलाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, थूलाओ मुसावायाओ वेरमणं, थूलाओ अदिण्णादाणाओ वेरमणं, सदारसंतोसे, इच्छापरिमाणे। (औप ७७) अण्डज अण्डे से उत्पन्न होने वाला जीव, जैसे-मयूर आदि। अण्डजाता अण्डजा मयूरादयः। (द ४.९ अचू पृ ७७) अण्डसूक्ष्म मधुमक्खी, चींटी आदि के अण्डे। उद्दसंडं महुमच्छिगादीण। कीडियाअंडगं-पिपीलियाअंडं, उक्कलिअंड-लूयापडगस्स। हलियंडं-बंभणियाअंडगं। सरडि-अंडगं-हल्लोहलिअंडं। (द ८.१५ अचू पृ १८८) अतथाज्ञान द्रव्यानुयोग का एक प्रकार । द्रव्य का अयथार्थ बोध, एकान्तवाद का अभ्युपगम। अतथाज्ञानं मिथ्यादृष्टिजीवद्रव्यमलातद्रव्यं वा वक्रतयाऽवभासमानमेकान्तवाद्यभ्युपगतं वा वस्तु। (स्था १०. ४६ वृ प ४५७) अतिक्रम आचार के अतिक्रमण की दिशा में प्रथम चरण । ज्ञानाचार, अज्ञानमरण मरण का एक प्रकार, जिसका हेतु ज्ञात नहीं होता, जो रागद्वेष की तीव्रता के कारण होता है। हेउं ण जाणइ अण्णाणमरणं मरइ। (भग ५.१९३) अज्ञानवादी ज्ञान का निरसन कर केवल (तप आदि) क्रिया से सिद्धि मानने वाला वादी, दार्शनिक। अज्ञानवादिनस्त्वाहुः-अपवर्ग प्रत्यनुपयोगित्वात् ज्ञानस्य। केवलं कष्टं तप एवानुष्ठेयं, न हि कष्टं विनेष्टसिद्धिः। (उशावृ प ४४४) (द्र क्रियावादी) अञ्जन अनाचार का एक प्रकार। आंखों में अंजन आंजना मनि के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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