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________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश स्फोट-अप्रकाशनीय के प्रकाशन से होने वाली क्रिया। (स्था २.३१) यच्चाजीवान् जीवकडेवराणि पिष्टादिमयजीवाकृतींश्च वस्त्रादीन वा आरभमाणस्य सा अजीवारम्भिकी। (स्था २. १५ वृ प३८) अजीव क्रिया क्रिया का एक प्रकार। पुद्गल-समुदाय का कर्म रूप में परिणत होना। अजीवस्य-पुद्गलसमुदायस्य यत्कर्मतया परिणमनं सा अजीवक्रिया। (स्था २.२ वृ प ३७) अजीवदृष्टिजा क्रिया दृष्टिजा क्रिया का एक प्रकार। निर्जीव पदार्थों को देखने के लिए होने वाली रागात्मक प्रवृत्ति। अजीवानां चित्रकर्मादीनां दर्शनार्थं गच्छतो या सा अजीवदृष्टिका। (स्था २.२१ वृ प ३९) अजीवनसृष्टिकी क्रिया नैसृष्टिकी क्रिया का एक प्रकार । धनुष्य आदि के द्वारा बाण आदि निर्जीव पदार्थों को फेंकने की क्रिया। यत्तु काण्डादीनां धनुरादिभिः सा अजीवनैसृष्टिकी। (स्था २.२८ वृ प ३९) अजीवपारिग्रहिकी क्रिया पारिग्रहिकी क्रिया का एक प्रकार। अजीव परिग्रह की सुरक्षा के लिए की जानेवाली प्रवृत्ति। (स्था २.१६) अजीवप्रातीत्यिकी क्रिया प्रातीत्यिकी क्रिया का एक प्रकार। अजीव के निमित्त से होने वाली राग-द्वेषात्मक प्रवृत्ति अथवा उसके कारण से होने वाले कर्मबंध की हेतुभूत प्रवृत्ति। अजीवं प्रतीत्य यो रागद्वेषोद्भवस्तज्जो वा बन्धः सा अजीवप्रातीत्यिकी। (स्था २.२४ वृ प ३९) अजीवप्रादोषिकी क्रिया प्रादोषिकी क्रिया का एक प्रकार। अजीव के प्रति प्रद्वेष से होने वाली क्रिया। अजीवे-पाषाणादौ स्खलितस्य प्रद्वेषादजीवप्राद्वेषिकी। (स्था २.८ वृ प ३८) अजीववैदारणिका क्रिया वैदारणिका क्रिया का एक प्रकार। अजीव के विषय में अजीवसामन्तोपनिपातिकी क्रिया सामन्तोपनिपातिकी क्रिया का एक प्रकार निर्जीव वस्तुओं के बारे में जन-समुदाय की प्रतिक्रिया सुनने पर होने वाली हर्षात्मक प्रवृत्ति। तथा रथादौ तथैव हृष्यतोऽजीवसामन्तोपनिपातिकी। __(स्था २.२५ वृ प ३९) अजीवस्पृष्टिजा क्रिया स्पृष्टिजा क्रिया का एक प्रकार। अजीव के स्पर्शन के लिए होने वाली रागद्वेषात्मक प्रवृत्ति। जीवमजीवं वा रागद्वेषाभ्यां पृच्छतः स्पृशतो वा या सा जीवपृष्टिका जीवस्पृष्टिका वा, अजीवपृष्टिका अजीवस्पृष्टिका वा। (स्था २.२२ वृ प ३९) अजीवस्वाहस्तिकी क्रिया स्वाहस्तिकी क्रिया का एक प्रकार। अपने हाथ में रहे हुए निर्जीव शस्त्र के द्वारा किसी दूसरे जीव को मारने की क्रिया। यच्च स्वहस्तगृहीतेनैवाजीवेन-खड्गादिना जीवं मारयति सा अजीवस्वाहस्तिकी। (स्था २.२७ वृ प ३९) अजीवोदयनिष्पन्न जीव में पुद्गल के योग से होने वाला कर्म का वह उदय, जो प्रधानरूप से पौद्गलिक पर्याय निष्पन्न करता है। अजीवेसु जहा ओरालियदव्ववग्गणेहिंतो ओरालियसरीरपयोगे दव्वे घेत्तूणं तेहिं ओरालियसरीरे णिव्वत्तेइ णिव्वत्तिए वा तं उदयनिष्फण्णो भावो। (अनु २७४ चू पृ ४२) अज्ञात उञ्छ अज्ञात रूप में गृहस्थ के घर जाकर अपना परिचय दिए बिना ली जाने वाली भिक्षा। अज्ञातोञ्छं परिचयाकरणेनाज्ञातः सन् भावोञ्छं गृहस्थोद्वरितादि। (द ९.३.४ हावृ प २५३) अज्ञातता योगसंग्रह का एक प्रकार । अज्ञात रूप में तप करना, उसका प्रदर्शन या प्रख्यापन नहीं करना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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