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________________ १८८ जैन पारिभाषिक शब्दकोश और सर्यास्त के बाद में किया जाता है। (नन्दी ७५) स्खलितस्य निन्दा प्रतिक्रमणार्थाधिकारः। (अनु ७४ हावृ पृ २५) अतीतदोषनिवर्तनं प्रतिक्रमणम्। (तवा ६.२४.११) 'प्रतिक्रमणं' उभयकालं षड्विधावश्यककरणयुक्तो धर्मः। (बृभा ३४२५ वृ) प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त प्रायश्चित्त का एक प्रकार । प्रवचन आदि में अथवा आवश्यक कार्यों में सहसा नियमों का अतिक्रमण होने पर दूसरों से प्रेरित हो या स्वयं स्मृति कर 'मिच्छा मि दुक्कडं' का प्रयोग करना। पडिक्कमणं पुण पवयणमादिसु आवस्सगकंमे वा सहसा अतिक्कमणे पडिचोतितो सयं वा सरितुण मिच्छा दुक्कडं करेति एवं तस्स सुद्धी। (आवचू २ पृ २४६) प्रतिक्रमणमण्डली मण्डली का एक विभाग, जिसकी व्यवस्था के अनुसार । श्रमण गुरु की सन्निधि में अवस्थित होकर सामूहिक प्रतिक्रमण (षडावश्यक) करते हैं। (द्र मण्डली) प्रतिज्ञा साध्य का निर्देश करना। साध्यनिर्देश: प्रतिज्ञा। (प्रमी २.१.११) संदेहों का निवर्तन करने के लिए जिज्ञासा की जाती है। पडिपुच्छणयाए णं सुत्तत्थतदुभयाई विसोहेइ। (उ २९.२१) प्रतिप्रच्छना सामाचारी गुरु के द्वारा किसी कार्य के लिए नियुक्त किए जाने पर उसे प्रारम्भ करते समय पुनः गुरु की अनुमति लेना। गुरुनियुक्तोऽपि हि पुनः प्रवृत्तिकाले प्रतिपृच्छत्येव गुरुं, स हि कार्यान्तरमप्यादिशेत् सिद्धं वा तदन्यतः स्यात्। (उ २६.५ शावृप५३४) प्रतिबुद्धजीवी मन, वचन और काया की दुष्प्रवृत्ति पर नियन्त्रण रखने वाला, धृतिमान, संयमी और जितेन्द्रिय। जत्थेव पासे कइ दुप्पउत्तं, काएण वाया अदु माणसेणं। तत्थेव धीरो पडिसाहरेज्जा, आइन्नओ खिप्पमिवक्खलीणं। जस्सेरिसा जोग जिइंदियस्स, धिइमओ सप्पुरिसस्स निच्चं। तमाहु लोए पडिबुद्धजीवी, सो जीवइ संजमजीविएणं॥ (दचूला २.१४, १५) प्रतिमा संकल्प और विधिपूर्वक किया जाने वाला साधना का एक विशेष प्रयोग। द्रव्यक्षेत्रकालभावैः प्रतिमीयमानः साधनाविशेषः प्रतिमा। (जैसिदी ६.२५) प्रतिमान विभागनिष्पन्न द्रव्यप्रमाण का एक प्रकार, जिससे स्वर्ण, रजत आदि मूल्यवान वस्तुएं तोली जाती हैं। पडिमाणे-जण्णं पडिमिणिज्जइ। एएणं पडिमाणप्पमाणेणं सुवण्ण-रजत-मणि-मोत्तियसंख-सिल-प्पवालादीणं दव्वाणं पडिमाणप्यमाणनिव्वित्तिलक्खणं भवइ। (अनु ३८५) प्रतिमास्थायी कायक्लेश का एक प्रकार। भिक्षु-प्रतिमाओं की विविध मुद्राओं में स्थित रहने वाला। प्रतिमास्थायी-भिक्षप्रतिमाकारी। (स्था ७.४९ ७ प ३७८) प्रतिपाति अवधिज्ञान अवधिज्ञान का एक प्रकार, जो कुछ काल तक अवस्थित रहकर फिर प्रदीप की तरह बुझ जाता है। पडिवाइ ओहिनाणं-जण्णं"पासित्ताणं पडिवएज्जा। (नन्दी २०) यदुत्पन्नं सत् क्षयोपशमानुरूपं कियत्कालं स्थित्वा प्रदीप इव सामस्त्येन विध्वंसमुपयाति तत् प्रतिपाति। (नन्दी २० मवृ प ८२) प्रतिपूर्ण पौषध (स्था ४.३६२) (द्र पौषधोपवास) प्रतिप्रच्छना स्वाध्याय का दूसरा प्रकार, जिसमें सूत्र और अर्थ से संबंधित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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