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________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश १७३ या जाति से परिहार करना। जाव-छम्मासियं सो परिहारिओ। (नि ४.११८ चू) वादिनोपन्यस्तस्य दूषणस्य असम्यकपरिहारो जात्युत्तरं (द्र परिहार तप) परिहरणदोषः। (स्था १०.९४ वृ प ४६७) ३. भिक्षा आदि के दोषों का परिहरण करने वाला उद्युक्तविहारी मुनि। परिहारकल्प परिहारिकः-पिण्डदोषपरिहरणादुद्युक्तविहारी साधुः। (बृभा ६४४७) (द्र परिहारविशुद्धि) (आचूलावृ प ३२४) परिहारिक कुल परिहार तप (निभा २७७७ वृ) प्रायश्चित्त का एक प्रकार। प्रायश्चित्त-वहन के लिए किया (द्र पारिहारिक कुल) जाने वाला मासलघु आदि तप। वह तप, जिसमें तपस्वी मुनि के लिए संभाषण, संभोजन आदि दस पदों का परिहार- परीक्षा निषेध होता है। १. लक्षित वस्तु में लक्षण उपपन्न हो रहा है या नहीं, इसका 'परिहारो' मासलघकादिस्तपोविशेषः। (क २.४७) प्रमाण से अर्थावधारण करना। एस तवं पडिवज्जति, न किंचि आलवति मा य आलवह। उद्दिष्टस्य लक्षितस्य च यथावल्लक्षणमुपपद्यते न वा इति अत्तट्ठचिंतगस्सा, वाघातो भेण कायव्वो॥ (व्यभा ५४९) प्रमाणतोऽर्थावधारणं परीक्षा। (न्याकु १.३ १ २१) (द्र शुद्ध तप) २. विरुद्ध नाना युक्तियों के उपस्थित होने पर उनके प्राबल्य और दौर्बल्य का अवधारण करने के लिए होने वाला विचार । परिहारविशुद्धि चारित्र विरुद्धनानायुक्तिप्राबल्यदौर्बल्यावधारणाय प्रवर्तमानो विचार: चारित्र का एक प्रकार। नवपूर्वधर अथवा कुछ न्यून दशपूर्वधर परीक्षा। (न्यादी पृ ८) नौ साधुओं द्वारा अठारह मास तक किया जाने वाला तप का विशेष प्रयोग। परीत सव्वे चरित्तमंतो य, दंसणे परिनिट्ठिया। १. प्रत्येकशरीरी जीव। णवपुब्विया जहन्नेणं, उक्कोस दसपुब्विया॥ २. परिमित संसार (जन्म-मरण) वाला जीव। ... दशपूर्विणः'किञ्चिद् न्यूनदशपूर्वधरा मन्तव्याः। परित्ते विहे पण्णत्ते-कायपरित्ते य संसारपरित्ते य॥ (बृभा ६४५४ ) (जीवा ९.७६) परिहारिओ वि छम्मासे अणपरिहाओ वि छम्मासा। (द्र कायपरीत, संसारपरीत) कप्पद्वितो वि छम्मासे एते अट्ठारस उ मासा॥ परीतजीव (बृभा ६४७४) जस्स मूलस्स भग्गस्स, हीरो भंगे पदीसई। परिहारिक परित्तजीवे उसे मूले, जे यावण्णे तहाविहे। १. वह मुनि, जो परिहारविशुद्धि चारित्र की साधना में (प्रज्ञा १.४८.२०) प्रारंभिक छ: महीने तक तप करता है। (द्र प्रत्येकजीव) परिहारिकाः प्रथमत: षण्मासान् प्रस्तुतं तपो वहन्ति। परीतसंसारी (बृभा ६४७४ वृ) (द्र निर्विशमानकल्पस्थिति) वह जीव, जिसका संसार-जन्ममरण सीमित हो गया है। २. परिहारतप प्रायश्चित्त को वहन करने वाला मुनि। इस परीत्तसंसारिकाः-संक्षिप्तभवाः। (स्था २.१८८ वृप५६) तप की अवधि एक मास से छह मास तक हो सकती है। परीषह पायच्छित्तमणावण्णो अपरिहारिओ. आवण्णो मासाति मार्ग से अविच्युति और निर्जरा के लिए साधु द्वारा सहनीय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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