SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७४ जैन पारिभाषिक शब्दकोश परिस्थिति। परीषह बाईस हैं। परीति-समन्तात् स्वहेतुभिरुदीरिता मार्गाच्यवन-निर्जरार्थं साध्वादिभिः सह्यन्त इति परीषहाः। (उ २.१ शावृ प ७२) मार्गाच्यवननिर्जरार्थ परिषोढव्याः परीषहाः। (तसू ९.८) परीषहजय परीषह की स्थिति आने पर विचलित न होना। तेषां क्षधादिवेदनानां तीव्रोदयेऽपि"नित्यानन्दलक्षणसुखामृतसंवित्तेरचलनं स परीषहजयः। (बुद्रसंवृ पृ ११६) परोक्ष उपचार विनय आचार्य अथवा किसी साधु या साध्वी के सम्मुख न होने पर भी परोक्ष में उनका गुण-संकीर्तन करना। उनकी आज्ञा के अनुसार चलना और उनकी निंदा नहीं करना। परोक्षेष्वप्याचार्यादिष्वंजलिक्रिया--गुणसंकीर्तनानुस्मरणाज्ञानुष्ठायित्वादिः कायवाङ्मनोभिरवगन्तव्यः, रागप्रहसनविस्मरणैरपिन कस्यापि पृष्ठमांसभक्षणं करणीयमेवमादिः परोक्षोपचारविनयः प्रत्येतव्यः। (चासा १६५,६६) मुनि के लिए अनाचार का एक प्रकार। पलङ्ग पर सोना। . पलियंको सयणिज्जं। (द ३.५ अचू पृ६१) पर्यङ्का निषद्या का एक प्रकार। जिनप्रतिमा की भांति पद्मासन में बैठना। पर्यङ्का-जिनप्रतिमानामिव या पद्मासनमितिरूढा। (स्था ५.५० वृ प २८७) स्याज्जङ्घयोरधोभागे पादोपरि कृते सति। पर्यो नाभिगोत्तानदक्षिणोत्तरपाणिकः ।। (योशा ४.१२५) पर्यन्तकर वह मुनि, जो घात्यकर्मों का अंत करता है। यः घात्यकर्मणां पर्यन्तं करोति, स पर्यन्तकरः। (आभा ३.७२) पर्यव (उ २८.६) (द्र पर्याय) पर्यवजातलेश्य मरण १. बालमरण का एक प्रकार, जिसमें अशुद्ध लेश्या शुद्ध बनती जाती है। २. पण्डितमरण का एक प्रकार, जिसमें शद्ध लेश्या प्रवर्धमान विशुद्धि वाली होती है। बालमरणे"पज्जवजातलेस्से। पंडियमरणे"पज्जवजातलेस्से॥ पर्यवा:-पारिशेष्याद्विशुद्धिविशेषाः प्रतिसमयं जाता यस्यां सा तथा विशुद्धया वर्द्धमानेत्यर्थः। (स्था ३.५२०, ५२१ वृप १६५) पर्यव नय मूल नय का दूसरा प्रकार । ज्ञाता का वह अभिप्राय, जो द्रव्य को गौण कर पर्याय को ग्रहण करता है, जिसके द्वारा द्रव्य के उत्पाद-व्यय रूप पर्यायों पर विचार किया जाता है। (द्र द्रव्यार्थिक नय, पर्यायर्थिक नय) परोक्ष ज्ञान इन्द्रिय और मन से होनेवाला ज्ञान-मतिज्ञान और श्रुतज्ञान। अक्खा इंदिय-मणा परा, तेस जंणाणं तं परोक्खं । (नन्दी ३ चू ११) आद्ये मतिज्ञानश्रतज्ञाने परोक्षं प्रमाणं भवतः। कुतः? निमित्तापेक्षत्वात्। (तभा १.११) (द्र परोक्ष प्रमाण) परोक्ष प्रमाण १. वह प्रमाण, जो अस्पष्ट है-इन्द्रिय और मन के साहाय्य की अपेक्षा रखता है। अविशदः परोक्षम्। (प्रमी १.२.१) परसाहाय्यापेक्षं प्रमाणमस्पष्टत्वात् परोक्षम्। (भिक्षु ३.१ वृ) २. वह ज्ञान, जो साक्षात् आत्मा से नहीं, हेतु आदि से होता है तथा इन्द्रिय और मन की अधीनता से होता है। एगंतेण परोक्खं लिंगियं...। (विभा ९५) (द्र परोक्षज्ञान) पर्यङ्क पर्याप्तक वह जीव, जो पर्याप्त नाम कर्म के उदय से उस जन्म के योग्य सारी पर्याप्तियों को पूर्ण कर लेता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy