SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 189
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७२ विप्पमुक्क त्ति वृत्तं भवइ । परिभाषा प्राचीन दण्डनीति का एक प्रकार । थोड़े समय के लिए नजरबन्द करना, क्रोधपूर्ण शब्दों में 'यहीं बैठ जाओ' का आदेश देना । परिभाषणं परिभाषा - अपराधिनं प्रति कोपाविष्कारेण मा यासीः । (स्था ७.६६ वृ प ३७८) परिभोगैषणा भोजन करते समय लगने वाले दोष । (द्र परिभोगैषणाशोधि) (द ३.१५ जिचू पृ ११७) परिभोगैषणाशोधि १. भोजन करते समय संयोजना, अप्रमाण, अंगार-धूम और कारण- इन दोषों का वर्जन करना । २. परिभोग में पिण्ड, वसति, वस्त्र और पात्र - इस चतुष्क का शोधन करना । .....संजोयणमाइ पंचेव ॥ (द्र भावग्रासैषणा) ( उ २४.११) परिभोयंमि चउक्कं, विसोहेज्ज जयं जई । (उ२४.१२) परिभोगैषणायां चतुष्कं पिण्डशय्यावस्त्रपात्रात्मकम् "यदि वा...' चतुष्कं च' संयोजनाप्रमाणाङ्गारधूमकारणात्मकम्, अंगारधूमयोर्मोहनीयान्तर्गतत्वेनैकतया विवक्षितत्वात् । Jain Education International (उशावृ प ५१७) (पिनि ६६९) परिमन्थु अवश्य करणीय कार्य में व्याघात पैदा करने वाला, जैसेवाचालता सत्यवचन का परिमंधु है । साधुसमाचारस्य परि - सर्वतो मध्नन्ति - विलोडयन्तीति परि-मन्थवः । (बृभा ६३१३ वृ) छ कप्पस्स पलिमंथू पण्णत्ता मोहरिए सच्चवयणस्स लिमं । (क ६.१९) परिमाणकृत प्रत्याख्यान प्रत्याख्यान का एक प्रकार । दत्ति, कवल, गृह, भिक्षा, द्रव्य आदि के परिमाणयुक्त प्रत्याख्यान । परिमाणं—संख्यानं दत्तिकवलगृहभिक्षादीनां कृतं यस्मिंस्तपरिमाणकृतम् । (स्था १०.१०१ वृ प ४७२ ) परिवर्तना स्वाध्याय का तीसरा प्रकार । कण्ठस्थ ग्रथों की पुनरावृत्ति । परावर्त्तना - गुणनम् । (उ२९.२२ शावृ प ५८४) परियट्टणं पुव्वपढितस्स अब्भसणं । (दअचू पृ १६) जैन पारिभाषिक शब्दकोश परिवर्तपरिहार वनस्पति का परिवर्तनवाद । वनस्पति के एक शरीर से मरकर बार-बार उसी शरीर में उत्पन्न होना । 'वणस्सइकाइयाओ पउट्टपरिहारं परिहरंति' त्ति परिवृत्ययस्तस्यैव वनस्पतिशरीरस्य परिहारः -- परिभोगमृत्वा स्तत्रैवोत्पादोऽसौ परिवृत्यपरिहारस्तं परिहरन्ति – कुर्वन्तीत्यर्थः । (भग १५.७५ वृ) परिवर्तित उद्गम दोष का एक प्रकार । साधु को देने के लिए वस्तु का विनिमय कर भिक्षा देना। स्वद्रव्यमर्पयित्वा परद्रव्यं तत्सदृशं गृहीत्वा यद्दीयते तत् परिवर्तितम् । ( योशा १.३८ वृ पृ १३४) परिवृत्य परिहार परिषद् १. इन्द्र की परिषद् के सदस्य । (द्र परिवर्तपरिहार) परिश्रव आत्मा का वह अध्यवसाय, जो कर्मों के निर्जरण का हेतु बनता है। कर्मनिर्जरणहेतुरात्माध्यवसायः परिश्रवः । (आभा ४.१२) (भग १५.७५ वृ) For Private & Personal Use Only (सूत्र २.२.६९ चू पृ ३६७) (द्र पारिषद) २. श्रमणोपासक का परिवारविशेष, जैसे-माता-पिता आदि आभ्यन्तर परिषद्, दास-दासी, मित्र आदि बाह्य परिषद् । परिषदः - परिवारविशेषा:, यथा-मातापितृपुत्रादिका अभ्यन्तरपरिसद्, दासीदासमित्रादिका बाह्यपरिषदिति । (समप्र ९५ वृप १११ ) परिहरणदोष वाद-दोष का एक प्रकार । वादी द्वारा उपन्यस्त हेतु का छल www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy