SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन पारिभाषिक शब्दकोश १७१ परिणामअनित्यता वह अनित्यता, जो स्वभाव से अथवा प्रयोग से प्रतिक्षण अवस्थान्तर को प्राप्त होती रहती है, जैसे-मृत्पिण्ड की बदलती हुई अवस्थाएं। परिणामानित्यता नाम मत्पिण्डो हि विस्त्रसाप्रयोगाभ्यामनुसमयमवस्थान्तरं प्रागवस्थाप्रच्युत्या समश्नुते। (तभा ५.४ वृ) उवस्सयपरिणा, कसायपरिणा, जोगपरिण्णा, भत्तपाणपरिणा। (स्था ५.१२३) (द्र ज्ञपरिज्ञा, प्रत्याख्यानपरिज्ञा) २. भक्तप्रत्याख्यान नामक अनशन। 'परिज्ञा' इति भक्तप्रत्याख्यानम्। (बृभा १२८३ वृ) परिज्ञातकर्मा जो ज्ञानी पुरुष कर्म-समारंभ के परिणाम को जान लेने के बाद उससे विरत होता है, कर्मत्यागी मुनि।। परिणायकम्मे-ज्ञानी पुरुषः कर्मसमारम्भस्य परिणाम ज्ञात्वैव ततो विरमति, अत एव स परिज्ञातकर्मा इत्युच्यते। (आभा १.१२) परिण्णायकम्मो णाम जाणिऊण विरतो। (आ १.१२ चू पृ १७) जस्सेते छज्जीवणिकायसत्थसमारंभा परिण्णाया भवंति, से हु मुणी परिण्णायकम्मे। (आ १.१७७) परिज्ञातपञ्चाश्रव जो पांच आश्रवों को जानकर छोड़ चुका है। परिण्णा विहा-जाणणापरिण्णा पच्चक्खाणपरिण्णा य, जे जाणणापरिणाए जाणिऊण पच्चखाणपरिणाए ठिता ते पंचासवपरिण्णाता। (द ३.११ अचू पृ६३) परिणामक १. वह साधु, जो आगमोक्त विषय पर श्रद्धा करता है। जो दव्व-खेत्तकय-काल-भावओ जं जहा जिणक्खायं। तं तह सद्दहमाणं, जाणसु परिणामयं साहुं॥ (बृभा ७९३) २. उत्सर्ग (-सूत्र) और अपवाद (-सूत्र) का ज्ञाता। 'परिणामकान' यथास्थानमपवादपदपरिणमनशीलान। (बृभा १९१९ वृ) परिणामप्रत्ययिक परिणमन (परिणाम) से होने वाली पुद्गलों की स्वाभाविक संरचना, जैसे-बादल। जण्णं अब्भाणं, अब्भरुक्खाणं जहा ततियसए जाव अमोहाणं परिणामपच्चएणं बंधे समुप्पज्जइ। (भग ८.३५३) परिणामिनित्यता वह नित्यता, जो परिवर्तनशील है, जैसे-आत्मा सदा ही आत्मा रहेगी-इस दृष्टि से वह नित्य है। उसके पर्यायपरिवर्तन होता रहता है-इस दृष्टि से वह परिणामी है, अनित्य है। यह जैन दर्शन का परिणामी नित्यवाद है। आविब्भाव-तिरोभावमेत्त परिणामिदव्वमेवेयं। निच्चं.....॥ (विभा २६६६) जं जाहे जं भावं परिणमइ तयं तया तओऽणन्न। परिणइमेत्तविसिटुं दव्वं.....॥ ..."पर्यायं परिणमति"द्रव्यमेव परिणतिमात्रविशिष्टमविचलितस्वरूपं। (विभा २६६८ वृ) परिनिर्वत सिद्ध जीव, जो जन्म, जरा, मरण, रोग आदि से सर्वथा मुक्त परिणत १. वह स्थावर जीव, जो स्वकाय-परकाय शस्त्र आदि के द्वारा परिणामान्तर को प्राप्त हो चुका है, निर्जीव हो चुका है। परिणताः-स्वकायपरकायशस्त्रादिना परिणामान्तरमापादिताः, अचित्तीभूता इत्यर्थः। (स्था २.१३ वृ प५०) । २. वह जीव और पुद्गल, जो विवक्षित परिणाम को छोड़कर परिणामान्तर को प्राप्त हो चुका है। जीवपुद्गलरूपाणि तानि च विवक्षितपरिणामत्यागेन परिणामान्तरापन्नानि परिणतानि। (स्थावृ प५१) परिणाम १. एक अवस्था से दूसरी अवस्था में जाना-न सर्वथा अवस्थान, न सर्वथा विनाश। परिणामः अवस्थातोऽवस्थान्तरगमनम्। (स्थावृ प १९०) २. द्रव्य का स्वभाव, शक्ति अथवा धर्म। परिणामः स्वभावः शक्तिः धर्मः। (स्थावृ प ४३०) परिनिव्वुडा नाम जाइजरामरणरोगादीहिं सव्वप्पगारेण वि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy