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________________ ११८ अन्य प्रदेश में किया जाने वाला प्रयोग, जैसे- कोंकण आदि प्रदेशों में दूध को पिच्च, जल को नीर कहा जाता है, उसका प्रयोग अन्यत्र करना भी सत्य है । जनपदेषु देशेषु यद्यदर्थवाचकतया रूढं देशान्तरेऽपि तत्तदर्थवाचकतया प्रयुज्यमानं सत्यमवितथमिति जनपदसत्यं, यथा कोङ्कणादिषु पयः पिच्चं, नीरमुदकम् । (स्था १०.८९ वृ प ४६४) जन्म सचित्त, शीत आदि योनि में उत्पन्न होना, नया शरीर, नया जीवन धारण करना। इसके तीन प्रकार हैं- सम्मूर्च्छन, गर्भ और उपपात । जन्म प्रादुर्भावमात्रं शरीरिणाम् । (तभा २.३२ वृ) आधारो हि योनिराधेयं जन्म, यतः सचित्तादियोन्यधिष्ठान आत्मा सम्मूर्च्छनादि जन्मना शरीराहारेन्द्रियादियोग्यान् पुद्गलानादत्ते । ( तवा २.३२.१३) सम्मूर्च्छनगर्भोपपाता जन्म । (तसू २.३२) जम्बूद्वीप वह द्वीप, जो तिर्यग्लोकस्थित असंख्य द्वीप-समुद्रों में मध्यवर्ती है, जिसका विष्कम्भ (विस्तार) एक लाख योजन है और जिसकी नाभि में मेरुपर्वत है। तन्मध्ये मेरुनाभिर्वृत्तो योजनशतसहस्रविष्कम्भो जम्बूद्वीपः । ( तसू ३.९) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति कालिक श्रुत का एक प्रकार। इसमें जम्बूद्वीप का पर्वत और नदियों सहित भौगोलिक विवेचन किया गया है। ( नन्दी ७८) जय वादी अथवा प्रतिवादी के द्वारा की जाने वाली अपने पक्ष की सिद्धि । वादिनः प्रतिवादिनो वा या स्वपक्षस्य सिद्धिः सा जयः । (प्रमी २.१.३१ वृ) जयन्त अनुत्तरविमान का तृतीय स्वर्ग । (द्र अपराजित) Jain Education International (तभा ४.२० ) जैन पारिभाषिक शब्दकोश जरा - शारीरिक वेदना – इसके द्वारा शरीर जीर्ण होता है। जेणं जीवा सारीरं वेदणं वेदेंति तेसि णं जीवाणं जरा । (भग १६.२९) जरायुज गर्भ जन्म का एक प्रकार । जन्म के समय जरायु-रक्तमांस की झिल्ली से वेष्टितदशा में उत्पन्न होने वाला जीव, जैसे - गाय, भैंस आदि । जरायुजाण्डजपतानां गर्भः । ....... यज्जालवत् प्राणिपरिवरणं विततमां सशोणितं तज्जरायुरित्युच्यते । (तवा २.३३) जराउवेढिता जायंति जराउजा गवादयः । (द ४.९ अचू पृ ७७) जलचारण चारण ऋद्धि का एक प्रकार। इस ऋद्धि के द्वारा साधक जलकायिक जीवों की विराधना किए बिना जल पर पैर रखकर चल सकता है। जलमुपादाय वाप्यादिष्वप्कायजीवानविराधयन्तः भूमाविव पादोद्धारनिक्षेपकुशलाः जलचारणाः । (तवा ३.३६ पृ २०२ ) जल्ल परीषह परीषह का एक प्रकार । शारीरिक मैल से उत्पन्न उद्विग्नता, जो मुनि के द्वारा समभावपूर्वक सहनीय है। किलिन्नगाए मेहावी पंकेण वा रएण वा । घिसु वा परितावेण सायं नो परिदेवए ॥ वेज्ज निज्जरापेही आरियं धम्मऽणुत्तरं । जाव सरीरभेउ त्ति जल्लं कारण धार ॥ (उ २.३६, ३७) For Private & Personal Use Only जल्लौषधि लब्धि का एक प्रकार । मैल से रोग को दूर करने वाली योग विभूति । जल्लो मल: चात्मानं परं वा रोगापनयनबुद्ध्या विडादिभिः स्पृशतः साधोस्तद्रोगापगमः । (विभा ७७९ वृपृ ३२२ ) जागरिका प्रबोध-नींद और प्रमाद से मुक्त रहकर किया जाने वाला चिन्तन | www.jainelibrary.org
SR No.016091
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2009
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, & agam_dictionary
File Size17 MB
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